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मत करो इनका बचपन कुरूप

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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‘बाल श्रम दिवस’ १२ जून विशेष

ये ईश्वर स्वरूप,ये देव रूप,
मत करो इनका बचपन कुरूप।
तन कोमल,मन निर्मल है,
ये माखन चोर कृष्ण स्वरूप॥

ये भविष्य देश का,आँगन की फुलवारी है,
ओ गद्दार देश के क्यूँ शोषित बचपन की ये क्यारी है।

खेत-खलिहानों में जोत रहे,
बचपन इनका छीन रहे।
छीन कलम क्यूँ बना दिया मजदूर,ये बालस्वरूप॥

ये कलाकार,ये राष्ट्र निर्माता,पुकार रहा,
कुछ टुकड़ों की खातिर क्यूँ प्रतिभा इनकी बेच रहा।
शिक्षा पर अधिकार है इनका,
सौदा न कर इनके तन का।
जी लेने दे जीवन अनुरूप॥

ये कच्ची माटी है,
जैसा ढालोगे,ढल जाएंगें।
मजदूरी की आग में पक जाएंगें,
वैसा ही बन जाएंगें,जैसा दोगे रूप॥

ये कोरी स्लेट मन का दर्पण,
जो लिख दोगे लिख जाएगा।
तेरा ही अक्स नजर आएगा,
जीने दो बचपन,ये गुन-गुनी कच्ची धूप॥

परिचय–गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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