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न चल पाएगी ये मक्कारी

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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भारत और चीन के रिश्ते स्पर्धा विशेष……

चीन की देखो ये मक्कारी,
भारत से रिश्तों को,
भुना रहा व्यापारी।
उसी की ये योजना है सारी॥

१९८१ से बना रहा था ये विषाणु,
विश्व विनाशक ‘कोरोना’ महामारी।
वुहान में खत्म कर दीन जन को,
विश्व शक्ति पाने की,की तैयारी॥

वरना सोचो थम गई चीन में,
फैली विश्व में ये बीमारी।
कामयाब योजना चीन की,
भारत में न चल पाएगी ये मक्कारी॥

जब परेशान है ये दुनिया,
फिर खेली चाल पुरानी।
भारत की सरजमीं पर भेजी सेना सारी,
बात समझौते की,सीमा पर करता दुश्वारी॥

मायाजाल व्यापार का फैलाया,
भ्रमित भारत की जनता सारी।
करना बहिष्कार है चीनी उत्पादों का,
कर उत्पादन देश में जगाओ सोई प्रतिभा सारी॥

कच्चा-पक्का माल बना,
कर मोल कम,खत्म करो कर की बीमारी।
स्वदेशी का कर घटा,पहले अपनाना होगा,
चीनी उत्पादों पर लगाना होगा॥

आकर्षण है मात्र चीन का,
घटिया,सस्ता और फिकाऊ।
जन-जन को समझना होगा,
नव उत्पादन देश में करना है जरूरी॥

जन-जन के हृदय में हो नफरत चीनी,
एक ही रिश्ता रह गया बाकी।
अब सिर्फ नफरत है चीन से,
है हरदम भारत की पूरी तैयारी॥

परिचय–गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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