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‘अमृत काल’ में नारी का जीवन भी अमृतमय बने

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ विशेष….

महिलाओं की भागीदारी को हर क्षेत्र में बढ़ावा देने और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए हर वर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है। महिला अधिकार कार्यकर्ता रहीं क्लारा जेटकिन ने १९१० में इस दिवस की बुनियाद रखी थी। इस दिन पर सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और कई दूसरे क्षेत्रों में अपना अहम योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। साल २०२४ का वाक्य है- ‘इंस्पायर इंक्लूजन’, मतलब एक ऐसी दुनिया, जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले, जिससे अपनेपन, प्रासंगिकता और सशक्तिकरण की भावना आती है। परिवार, समाज, देश एवं दुनिया के विकास में जितना योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का। हालांकि, महिलाओं को पुरुषों के समान उतने अधिक सम्मान, अवसर एवं स्वतंत्रता नहीं मिलती, लेकिन नया भारत-सशक्त भारत के निर्माण की प्रक्रिया में महिलाएँ घर-परिवार की चार दीवारों को पार करके राष्ट्र निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दे रही हैं।

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। चाहे उज्ज्वला योजना द्वारा उन्हें गैस सिलिंडर दिलाना हो, गाँवों में घरों और शौचालय का निर्माण हो या ‘नारी शक्ति वंदन’ अधिनियम को संसद में पास कराना। आज दुनिया के सभी देश इस बात को मान रहे हैं कि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की महिलाएँ बहुत आगे बढ़ रही हैं। खेल से मनोरंजन जगत तक और राजनीति से सैन्य व रक्षा तक में महिलाएँ बड़ी भूमिका में हैं। बात भारतीय या अभारतीय नारी की नहीं, बल्कि उसके प्रति दृष्टिकोण की है। आवश्यकता इस दृष्टिकोण को बदलने की है, जरूरत सम्पूर्ण विश्व में नारी के प्रति उपेक्षा एवं प्रताड़ना को समाप्त करने की है। इस दिवस की सार्थकता तभी है जब महिलाओं को विकास में सहभागी ही न बनाएं, बल्कि उनके अस्तित्व एवं अस्मिता को नोंचने की वीभत्सताओं एवं त्रासदियों पर विराम लगे।
आजादी के बाद से राष्ट्र के विकास के साथ, भारतीय महिलाओं को राष्ट्र की प्रगति और विकास में समान भागीदार बनने के लिए अधिकारों और अवसरों की प्राप्ति हुई है। सावित्रीबाई फुले, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, आनंदीबाई गोपालराव जोशी, इन्दिरा गांधी से लेकर इंदिरा नुई, सायना नेहवाल, टीना डबी, सावित्री जिन्दल जैसी हस्तियों के रूप में महिलाओं ने सार्वजनिक और निजी जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी शूरवीरता एवं अपने कौशल का परिचय दिया है। नई शताब्दी में भारत में महिलाओं ने अपनी स्वयं की विशिष्ट पहचान के साथ मुक्त और स्वतंत्र व्यक्तित्व के तौर पर समाज द्वारा उन्हें सौंपी गई अविभाज्य साथी, राष्ट्र-निर्माता और विकास की विभिन्न भूमिकाओं को बखूबी निभाया है। वह अब पूर्व की भांति पूरी तरह चूल्हा-रसोई में ही नहीं लगी रहती। वो अब स्वयं और सभी मानव-जाति के लिए नए संसार में विश्वास की नई ऊँचाइयों हेतु उड़ान भर रही है। राष्ट्र के आर्थिक जीवन में महिलाओं को किसी भी तरह से पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। वैश्विक अर्थव्यवस्था की तेजी के युग में भारत के दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने में बहुत-सी महिलाओं ने अपने को सफल उद्यमियों एवं व्यावसायी के तौर पर साबित किया है। राजनीति में महिलाएँ लंबे समय से सक्रिय रही हैं। हालांकि, तब भी उन्हें नेतृत्व करने की अनुमति नहीं दी जाती थी, लेकिन भारत ऐसा पहला देश था जिसकी प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति एक महिला बनी। यहाँ तक कि, अमरीका भी अपने देश के सर्वोच्च पद के लिए किसी महिला का चुनाव नहीं कर पाया है।
महिला दिवस पर महिलाओं से जुड़े मामलों-महिलाओं की स्थिति, कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाएं, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, गाँवों में महिला की अशिक्षा एवं शोषण, सुरक्षा, बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को एक बार फिर चर्चा में लाकर सार्थक वातावरण का निर्माण किया जाए। तमाम सरकारी प्रयत्नों एवं सामाजिक जन-चेतना के बावजूद एक टीस-सी मन में उठती है कि, आखिर नारी कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी ? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा ? बलात्कार, छेड़खानी, भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी ? कब तक उसके अस्तित्व को नोंचा जाता रहेगा ?
अब महिला समाज को अपनी प्रतिरोधात्मक शक्ति को विकसित कर जागृत जीवन जीने का अभ्यास करना है। उसे अपने परम्परागत महत्व एवं शक्ति को समझना होगा। वैदिक परम्परा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में, बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में नारी की आराधना होती रही है। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धन-धान्य आदि प्राप्त होता है, फिर क्यों नारी की अवमानना होती है ?
नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पीढ़िका है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा और शांति की अनुभूति होती है, वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। नारी जाति के अलंकरण हैं-सादगी और सात्विकता। सोने, चाँदी, हीरे, मोती आदि से निर्मित आभूषण उसके सहज सौंदर्य को आवरित ही कर सकते हैं, निखार नहीं दे सकते। ‘सत्यं, शिवं सुंदरम्’ की समन्विति कृत्रिम संसाधनों से नहीं, अनंत स्तेज को निखारने से हो सकती है। सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-‘नारी सत्यं, शिवं और सुंदरम् का प्रतीक है।’ उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है, लूटी जाती है ? स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है।

‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, किंतु आज देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक है। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसीलिए आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान दिया जाता था। सीता, सती-सावित्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है। इसके अलावा अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी आदि नारियाँ जिन्होंने अपनी सभी परम्पराओं आदि से ऊपर उठ इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी, लेकिन समय परिवर्तन के साथ साथ देखा गया कि, देश पर अनेक आक्रमणों के पश्चात् भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे। दिन-प्रतिदिन उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ता था। इसके साथ भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियों (सती प्रथा, बाल विवाह, बहू पति विवाह) और परम्परागत रूढ़िवादिता ने भी नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की, पर अब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके हैं, तो अमृत काल में नारी का जीवन भी अमृतमय बने, यही महिला दिवस मनाने को वास्तविक अर्थ दे सकता है।