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ईश्वर से प्रार्थना

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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तेरे दर पर आया हूँ बन कर भिखारी,
ले लो शरण मुझको अपनी मुरारी।
तुमने ही भेजा है मुझको धरा पर,
भूलूं कभी मैं न कृपा ये तुम्हारी।
तेरे दर पर आया…

दर्शन का प्यासा मैं जाऊं कहां पर,
आया हूँ दर तेरे सर को झुका कर।
विनती तू सुन ले ओ सांवरे सलोने,
विपदा पड़ी अब तो आओ गिरधारी।
तेरे दर पर आया…

कितनों की तुमने है भक्ति निभा दी,
जीवन की सारी ही पीड़ा मिटा दी।
ग्राह को मारा,गए को तुमने उबारा,
चले आओ मोहन हमारी है बारी।
तेरे दर पर आया…

आओ सभी राह देखें तुम्हारी,
फैली जगत में कैसी ये महामारी।
जगत के नियन्ता आ कर बचा लो,
खतम होगी वरना ये दुनिया तुम्हारी।
तेरे दर पर आया…

नजर कोई रास्ता न आता है मुझको,
भय मृत्यु का भी सताता है मुझको।
खड़ा सारा जग द्वार मृत्यु के भगवन्,
जा रही गर्त में है ये सृष्टि तुम्हारी।

तेरे दर पर आया हूँ बन कर भिखारी,
ले लो शरण हमको अपनी मुरारी॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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