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जर्जर नौका गहन समंदर

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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मँझधारों में माँझी अटका,
क्या तुम पार लगाओगी।
जर्जर नौका गहन समंदर,
सच बोलो कब आओगी।

भावि समय संजोता माँझी,
वर्तमान की तज छाया
अपनों की उन्नति हित भूला,
जो अपनी जर्जर काया
क्या खोया,क्या पाया उसने,
तुम ही तो बतलाओगी।
जर्जर…ll

भूल धरातल भौतिक सुविधा,
भूख प्यास निद्रा भूलाl
रही होड़ बस पार उतरना,
कल्पित फिर सुख का झूलाl
आशा रही पिपासित तट-सी,
आ कर तुम बहलाओगी।
जर्जर…ll

पीता रहा स्वेद आँसू ही,
रहा बाँटता मीठा जलl
पतवारें दोनों हाथों से,
खेते खोए सपन विकलl
सोच रहा था अगले तट पर,
तुम ही हाथ बढ़ाओगी।
जर्जर…ll

झंझावातों से टकरा कर,
घाव सहे नासूरी तनl
चक्रवात अरु भँवर जाल से,
हिय में छाले थकता तनl
तय है जब मरहम माँगूगा,
तुम हँस कर बहकाओगी।
जर्जर…ll

लगे सफर अब पूरा होना,
श्वाँसों की तनती डोरीl
सज़-धज के दुल्हन-सी आना,
उड़न खटोला ले गोरीl
शाश्वत प्रीत मौत ममता तुम,
तय है तन तड़पाओगी।
जर्जर…ll

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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