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प्रेमआँसू सप्तक

 

अनुपम आलोक
उन्नाव(उत्तरप्रदेश)
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कुछ आँसू पीड़ा जनित,कुछ में हर्ष अपार।
कुछ में राधा की विरह,कुछ कान्हा का प्यारll

कुछ आँसू में दिख रहा,मीरा का विश्वास।
कुछ आँसू कातर दिखे,द्रपुद सुता के पासll

स्वारथ वश बहते दिखे,कुछ छलिया दृगकोष।
कुछ नयनों से छलक कर,देते हैं संतोषll

कुछ आँसू बहते मिले,जिनमें था संताप।
कुछ! दोषी की आँख से,बहता पश्चातापll

कहीं दिखी हमको विवश,आँसू की तस्वीर।
तन्हाई के अश्रु थे,कहीं बने जागीरll

कभी दिखी कायर हमें,आँसू की तासीर।
कभी अश्रु बनते दिखे,दोधारी शमशीरll

लाचारी के अश्रु भी,देखे हमने मित्र।
कभी दिखा दृगकोष का,दुहरा हमें चरित्रll

परिचय-अनुपम ‘आलोक’ की साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि है। अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ का जन्म १९६१ में हुआ है। बाँगरमऊ,जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मोहल्ला चौधराना निवासी श्री सिंह ने वातानुकूलन तकनीक में डिप्लोमा की शिक्षा ली है। काव्य की लगभग सभी विधाओं में आप लिखते हैं। गीत,मुक्तक व दोहा में विशेष रुचि है। आपकी प्रमुख कृतियाँ-तन दोहा मन मुक्तिका,अधूरी ग़ज़ल(साझा संकलन)आदि हैं। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको सम्मान में साहित्य भूषण,मुक्तक प्रदीप,मुक्तक गौरव,मुक्तक शास्त्री,कुण्डलनी भूषण, साहित्य गौरव,काव्य गौरव सहित २४ से अधिक सम्मान हासिल हुए हैं।

 

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