कुल पृष्ठ दर्शन : 284

जाग भी जाओ

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
********************************************************************

हे मानुस! तू सभी जीव में ज्ञानी है-विज्ञानी है,
जैव-जगत में नहीं दूसरा कोई तेरा सानी है।
सकल जगत की इच्छाओं का तू राजा है,रानी है,
सच्चाई से दूर भागना बस तेरी नादानी हैll

मैं मुर्गा बन गला फाड़कर तुझे जगाने आता हूँ,
सूरज की किरणों में शामिल होकर धूप खिलाता हूँ।
फूलों की पंखुड़ियों से भौरों को मुक्त कराता हूँ,
और हवा में खुशबू बनकर इधर-उधर बिखराता हूँll

चिड़ियों के कलरव में घुलकर मीठा गान सुनाता हूँ,
वसुधा के तन से शबनम की धवल वितान उठाता हूँ।
अम्बर में बिखरे तारों को सोने हेतु पठाता हूँ,
दूर क्षितिज के पूर्व छोर से लाली बन मुस्काता हूँll

कभी तीव्र आँधी बनकर तेरा सर्वस्व उड़ाता हूँ,
मेघ-गर्जना बिजली बनकर बहुधा तुझे डराता हूँ।
नारी के पावन रूपों में नरता तुझे सिखाता हूँ,
कवि के छंदों में नवरस बन सही-गलत दिखलाता हूँll

तुझे जगाने हेतु जगत में लाखों जतन किये मैंने,
शारद का धर रूप श्वान बिल्ली बन रटन किये मैंने।
किन्तु तुम्हारी नींद निगोड़ी सागर से भी गहरी है,
संदेशों को बार-बार झुठलाने वाली बहरी हैll

जाग न पाये लेकिन सोचो समय चक्र तो घूमेगा,
जगने वाला आगे बढ़कर उचित फलों को चूमेगाl
इसीलिए संकेतों को मत भूल कभी इंकार करो,
समय चक्र के साथ चलो शाश्वत विधान स्वीकार करोll

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

Leave a Reply