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हे! राम रमो फिर हर हिय में

आचार्य गोपाल जी ‘आजाद अकेला बरबीघा वाले’
शेखपुरा(बिहार)
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हे! राम रमो फिर हर हिय में,
समरसता का ज्ञान बढ़ाओ।
चहुँओर है फैला भेद-भाव,
तुम स्नेह सरिता शीघ्र बहाओ।
रन रावण नित्य निर्माण करें,
बिन तेरे कौन लड़े,समझाओ॥

हे! पुरुषोत्तम पावन प्रभु मेरे,
रावण रब सा पुनः पूजित है,
असत्य सत्य को करे पराजित,
अन्याय आज आनंद मनाता है,
अब तो प्रभु दया दृग खोलो,
फिर से तुम अग्निबाण चलाओ॥

हे! दशरथ नंदन पितु प्रण हेतु,
वनवास गए निज राजतिलक त्यागे।
सूत धर्म,भ्रातृ धर्म,पति धर्म वरे,
विभीषण,सुग्रीव,सम सखा तेरे आगे।
हनुमंत सम सेवक सचिव सुमंत सुहाए,
फिर से वैसे दिन को तुम दिखलाओ॥

हे ! सीतापति सत्यनिष्ठ तुम,
बिन माया,रथ,कवच क्या खूब लड़े।
सौरज धीरज रथ चक्र बने,
सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका।
बल विवेक परहित है घोड़े,
क्षमा,कृपा,समता,रजु जोड़ रथ बनाओ॥

हे! कौशल्या सुत सुनो पुकार,
धरनी पर पाप कपट फिर छाया।
त्राहिमाम तेरी प्रजा करे चीत्कार,
घर-घर कुंभकरण है मेघनाथ माया।
रसिक राक्षस रावण-से है खड़े द्वार,
घर में सीता हरण होते अब तू ही इसे बचाओ॥

हे! रघुनंदन राम सुनो तुम,
अब तो अरज हमारी।
कब से तुम्हें पुकार रहे हैं,
भारत के हर नर-नारी।
करो कृपा इस अकेले पर,
हमें अब तो ना बिसराओ…॥
हे! राम रमो फिर हर हिय में…

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