राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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कल रात सपने में आया था रावण,
कहने लगा-‘बहुत कर लिया सहन,
युगों से कहते मुझे अत्याचारी रावण
करते हो हर वर्ष दशहरे में मेरा दहन,
द्वापर था पावन या कलि मनभावन
सत्य है तेरा मन या मैं ही था पावन।’
कह कर इतना हो गए वह मौन,
देखते-देखते छवि हो गई गौण
चला गया वह सत्य की खोज में,
कहता गया-‘मिलेंगे किसी दौर में’
मैं भी सोता रहा अपनी ही मौज में,
जैसे सोता था बेखबर हर रोज मैं।
आया पुनः मिलने हमसे एक दिन रावण,
चेहरे पर लिए भीषण क्रोध का दामन
कहा-‘कलियुग में कहीं आज राम नहीं,
तेरे कर्मों में मौजूद मेरा कोई दाम नहीं
मेरे घर महीनों रहकर सीता थी सच्ची,
आज कहीं भी सुरक्षित नहीं है बच्ची।’
पहले होती थी सत्कर्मों की पूजा,
आज घोटालों सिवा न कुछ दूजा
वचन रक्षार्थ होते थे तब बलिदान,
अब लूट-घसीट कर लेते धन-मान
मानव व्यर्थ बदनाम करते हो रावण,
अब घर-घर बसते कलियुग में रावण।’
कहता रावण-‘सुधर जाओ तुम आज,
वर्ना बिगड़ जाएगा तेरा सब काज
मेरी एक गलती से हुआ समूल नाश,
तेरी गलतियों पर भी होगी सजा खास
द्वापर में था लंका में एक ही रावण।
अब घर-घर बसते कलियुग में रावण,
अब घर-घर बसते कलियुग में रावण॥’
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।