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सभी जीवों पर दया करें

श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
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आजकल हर मनुष्य भौतिकता के युग में जी रहा है,और अपनी हर इच्छा को पूर्ण करना वह अपना कर्तव्य समझता हैl इस इच्छा को पूर्ण करने के चक्कर में वह ये भी भूल जाता है कि हम जो खा रहे हैं,पी रहे हैं,अथवा प्रयोग कर रहे हैं,कहीं वो सामान किसी जीव को मारकर तो नहीं बनाया जा रहा है।जैसे,आजकल बाजार में अधिकांश खाने की वस्तुओं में किसी न किसी पशु की चर्बी,खून या माँस आदि मिला रहता है,और पैकेट पर हरा यानि शाकाहारी का निशान बना रहता हैl अगर आप गूगल से तलाश करेगें तो पता चलेगा कि जो खा रहे,वह कितना शुद्ध और कितना अशुद्ध है।
इन्हीं बातों पर आपके लिए महत्वपूर्ण जानकारी-सन १९९३ में यूरोपियन कानून की तरह भारत में भी खाद्य पदार्थों को २ भागों में वर्गीकृत करते हुए माँसाहार के पैकेट पर लाल चिह्न एवं शाकाहार के पैकेट पर हरा चिन्ह लगाए जाने का कानून बना दिया गया था,किंतु सच यह है कि सरकारी अधिसूचना में माँसाहार के अंतर्गत बाल,पंख,सींग,नाखून,चर्बी और अंडे की जर्दी को बाहर रखा गया,यानि इनको शाकाहार में गिना गया। इसके चलते कुछ कम्पनियों ने अपने उत्पादों में नशीले पदार्थों का उपयोग करना शुरू कर दिया और हरा निशान लगाकर इनको बाजार में बेचना शुरू कर दियाl कम्पनी जैसे-सनफीस्ट-बिस्किट,कैडबरी-चॉकलेट,टॉफी आदि सहित नेसले-मिल्क,चॉकलेट,मैगी,नूडल्स आदि इसका सबूत हैंl प्रिया गोल्ड-क्लासिक क्रीम,स्नेक्स आदि सहित न्यूट्रीन-महालैक्ट्रो,जेम्स आदि कई वस्तुएँ भी इसमें शामिल हैंl
जो उत्पाद बाजार में बिक रहे हैं,उन सभी के हरे संकेत का सच यह है कि इन पदार्थों के बाहर आवरण पर आपको ई-४७१,ई-३२२, ई-८५३ आदि लिखा मिलेगा,जो स्पष्टतः जानवरों की चर्बी,खून,माँस,आंत आदि के मिश्रण का उपयोग करके बनाए गए हैं। जब आप तलाश करेगें तो पता चलेगा कि जिन्हें हम शाकाहारी समझकर खा रहे,हकीकत में वो सब माँसाहारी ही है।

अच्छा खाना सबका अधिकार है,पर हमें सभी जीवों के प्रति दया भाव रखना चाहिए। सभी पदार्थों को विवेकपूर्वक खरीदना चाहिए,ताकि हमारे द्वारा किसी भी जीव की हिंसा न हो,क्योंकि हमारी तरह प्रत्येक प्राणी को अपने प्राण प्रिय हैं-शुद्ध शाकाहारी अपनाएं,खुद जिएं और दूसरों भी जीने दें।

परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

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