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असली मायका

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रक्षाबंधन पर्व विशेष………..

राखी का त्यौहार आने वाला है, मीनाक्षी की ननंदें अपने मायके आ गई हैं। सभी उसके काम में हाथ बंटाती हैं। शाम को सभी बरामदे में बैठकर एक- दूसरे से बातचीत हँसी-मजाक करते रहते हैं। मीनाक्षी की सासू माँ सबको यही कहती है,-“मेरा क्या भरोसा? कब साँस निकल जाए ? तुम सभी मिल-जुल कर रहना। असली मायका भैया-भाभी से ही होता है।”
मीनाक्षी सोचने लगी,मेरी माँ ने तो यह कभी समझाया ही नहीं,बल्कि मैं और माँ दोनों ही भाभी के काम में मीन-मेख निकालते थे। उनके हर काम का मजाक बनाते रहते थे और मेरी माँ यही कहती रहती थी,-“जब तक मैं हूँ,तभी तक तेरा इस घर में आना-जाना है। मेरे मरने के बाद तुझे कोई पूछने वाला भी नहीं ?” माँ की इस बात ने भैया-भाभी से दूरियां बना दी। माँ तो चली गईं भगवान के घर,अब मुझे कौन रक्षाबंधन पर बुलाएगा ? मैं किस मुँह से मायके जाऊं ? आज मीनाक्षी को महसूस हो रहा था उससे कितनी बड़ी गलती हुई है। वह मन ही मन रो रही थी,तभी फोन की घंटी बजी। मीनाक्षी ने तीव्रता से फोन उठाया-उधर से आवाज आई,- “मीनाक्षी दीदी! माँ नहीं है तो क्या हुआ ? क्या मायका भूल जाओगी ? मैं तुम्हारे भैया और तुम्हारा भतीजा प्रफुल्ल सब तुम्हारा रक्षाबंधन पर आने का इंतजार कर रहे हैं। शीघ्रता से आ जाओ। हमसे कोई गलती हो गई हो तो माफ करना। आप बड़ी हैं,समझदार हैं। सभी को आपका इंतजार है।”
मीनाक्षी को रुलाई आ गई। वह जोर- जोर से रो कर कहने लगी,-“भाभी! मुझे माफ करना। मुझसे गलती हो गई। मैं भूल गई थी असली मायका माँ से नहीं, भैया-भाभी से होता है।”
सीमा बोली,-“पागलपंती ना करो! जो हुआ उसे भूल जाओ। रोओ मत। तुम्हारे भैया की कलाई को तुम्हारी राखी का इंतजार है। जल्दी आइए,यहीं खुल कर बात करेंगे। हाँ,भैया की मनपसंद मिठाई लाना ना भूलना।” मीनाक्षी मुस्कुराती बोली,-‘अच्छा! अच्छा भाभी जरूर।’
मीनाक्षी की आँखों में खुशियां तैर रहीं थीं। वह आज सही मायने में मायके और रक्षाबंधन का अर्थ समझ गयी थी।

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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