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दीवारें हटा

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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पक्षियों को पालना तो गर्म ये तारें हटा।
भाई चारा साधना तो धर्म दीवारें हटा।

देश में लड़ना है तो लड़ देश के हथियार से,
जो विदेशी हाथ में पहले वो तलवारें हटा।

विश्व भर में देख आया लालची है आदमी,
राजगद्दी के लिए ये खून की धारें हटा।

हड्डियां ही हड्डियां हैं महल के नीचे बिछी,
जागने वाली हैं अब ये जल्द मीनारें हटा।

झूठ-सच में फासला अब एक गज का भी नहीं,
बैलगाड़ी के लिए अब कीमती कारें हटा।

और ज्यादा मत कुरेदो राख में अंगार हैं,
जल न जाएं आग में टोपी व दस्तारें हटा।

खेत में अब तो सिंचाई हो रही है पम्प से,
आब में तेजाब वाली अब ये बौछारें हटा।

नाव में सुराख ‘हलधर’ ये तुझे किसने कहा,
छोड़ तो दरियाव में कुछ रोज पतवारें हटा॥

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