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आत्मगौरव का राष्ट्रीय पर्व है गणतंत्र दिवस

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष……….


दिवस हीरक यह गणतंत्र,
देता स्वशासन का मूल-मंत्र;
दिलाता हमें अहर्निश याद कि-
हम हुए सैंतालीस में स्वतंत्र!

मिला जब तिरंगा को सम्मान,
हुआ जब अपना राष्ट्रगान;
जनगण के मन में पनपा तब-
नित नया एक स्वाभिमान!

हिन्दी ले जब पुरानी आशा,
बनी जब हमारी राजभाषा;
सम्पर्क हित में थी बनी तभी-
अंग्रेजी हिन्दी की सहभाषा!

क्या है आज वही गणतंत्र ?
रह सके हम क्या पूर्ण स्वतंत्र;
जीवन का बड़ा हिस्सा क्या-
रहा नहीं अंग्रेजी संग परतंत्र!

फिर भी आयें हम मनायें-
आज दिवस हीरक गणतंत्र;
भारतीयता की अलख जगाने-
चलायें अपना अलग एक तंत्र!

ताकि इक्कीसवीं सदी में जग-
कह सके कि तुम न्यारे हो;
दूसरों के तुम सहारे न रह-
दूसरों के तुम बने सहारे हो!

भारत के तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों में से एक है २६ जनवरी। २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में पूरे देश में काफी जोश और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह,वह दिन है जब भारत में गणतंत्र और संविधान लागू हुआ था। यही कारण है कि इस दिन को हमारे देश के आत्मगौरव तथा सम्मान से भी जोड़ा जाता है। इस दिन देश भर में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते और खासतौर से विद्यालयों तथा सरकारी कार्या लयों में इसे काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसके उपलक्ष्य में भाषण,निबंध लेखन और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
हमारी मातृभूमि भारत लंबे समय तक ब्रिटिश शासन की गुलाम रही,जिसके दौरान भारतीय लोग ब्रिटिश शासन द्वारा बनाए गए कानूनों को मानने के लिए मजबूर थे। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लंबे संघर्ष के बाद अंतत: १५ अगस्त १९४७ को भारत को आजादी मिली। लगभग ढाई साल बाद भारत ने अपना संविधान लागू किया और खुद को लोकतांत्रिक गणराज्य के रुप में घोषित किया। लगभग २ साल ११ महीने और १८ दिन के बाद २६ जनवरी १९५० को हमारी संसद द्वारा भारतीय संविधान को पारित किया गया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक,गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।

राष्ट्रीय त्यौहार-
भारत में निवास कर रहे लोगों और विदेश में रह रहे भारतीयों के लिय गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाना सम्मान की बात है। इस दिन की खास महत्ता है और इसमें लोगों द्वारा कई सारे क्रिया-कलापों में भाग लेकर और उसे आयोजित करके पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसका बार-बार हिस्सा बनने के लिए लोग इस दिन का बहुत उत्सुकता से इंतजार करते है। देश में गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारी एक महीने पहले से ही शुरु हो जाती है।

विविधता में एकता का संकेत यह राष्ट्रीय-पर्व-
पूरे भारत में इस दिन सभी राज्यों की राजधानियों और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भी इस उत्सव पर खास प्रबंध किया जाता है। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपति द्वारा झंडारोहण और राष्ट्रगान के साथ होता है। हर राज्य अपनी-अपनी विविधता लिए झांकी प्रस्तुत करता है। इसके बाद तीनों सेनाओं द्वारा परेड,पुरस्कार वितरण,मार्च पास्ट आदि क्रियाएँ होती है। और अंत में पूरा वातावरण ‘जन गण मन’ से गूँज उठता है।

रंगारंग कार्यक्रम भी-
इस पर्व को मनाने के लिए विद्यालय-महाविद्यालय के विद्यार्थी बेहद उत्साहित रहते हैं और तैयारी एक महीने पहले से ही शुरु कर देते हैं। इस दिन विद्यार्थियों को अकादमी में,खेल या शिक्षा के दूसरे क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए पुरस्कार,इनाम तथा प्रमाण पत्र आदि से सम्मानित किया जाता है।

संविधान निर्माण की प्रक्रिया-
संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा १८९५ मेंं ‘स्वराज विधेयक’ द्वारा की गई थी। १९१६ में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया, जिसमें घरेलू शासन संचालन की मांग अंग्रेजों से की गई। १९२२ में गाँधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा कि- जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण भारतीय लोगों के इच्छानुकूल किया जाएगा।
१९२८ में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया,जिसमें मौलिक अधिकारों,अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवं डोमिनियन स्टेट के प्रावधान रखे गए। मार्च १९४७ में माउण्ट बेटन भारत के वायसराय बने। इन्होंने एक योजना प्रस्तुत की,जिसे (विभाजन ‘माउन्ट बेटन जून योजना’) ब्रिटेन के राजा ने मंजूर कर दिया। इस योजना की क्रियान्विति १५ अगस्त १९४७ के भारत स्वतंत्रता अधिनियम में हुई।
भारत को २ डोमेनियन स्टेट्स में बाँटा गया-भारत और पाकिस्तान। भारत के संविधान का निर्माण जब तक पूर्ण न हो, तब तक १९३५ के भारत शासन अधिनियम से चलना तय किया गया। संविधान सभा को संप्रभुता प्राप्त हो गई। विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया। भारतीय संविधान सहमति और समायोजन के आधार पर बनाया गया,जो २६ जनवरी से लागू किया गया।
इस दिन सभी को ये वादा करना चाहिए कि वे अपने देश के संविधान की सुरक्षा करेंगे,देश की समरसता और शांति को बनाए रखेंगे,साथ ही देश के विकास में सहयोग करेंगे।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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