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नारी सशक्त हो उठेगी,बस जरूरत बदलाव और पहल की

निक्की शर्मा `रश्मि`
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

प्रकृति का बनाया एक सुकोमल शीतल स्पर्श शक्ति के अपार भंडार के रूप में एक सुंदर रचना नारी है। नारी आज समाज के हर क्षेत्र में काम कर रही है, आज वह किसी का मोहताज नहीं है। फिर भी घर- समाज में उन्हें समझौता करना ही पड़ता है। दोहरी जिम्मेदारी में घिरी कई बार असमर्थता जताते हुए भी विभिन्न परिस्थितियों में अपने-आपको ढाल लेती है। समय बदला,सोच बदली है। आज नारी ने सशक्तिकरण में अपने-आपको साबित कर खड़ा कर लिया है।
नारी को भी पूरी तरह से समानता का अधिकार शिक्षा,संस्कृति,धार्मिक स्वतंत्रता,पुरुषों के समान अधिकार मिल चुके हैं। इसका उल्लेख संविधान में भी है। वह शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार,शोषण पर नियंत्रण और शोषण पर आवाज उठाना भी सीख गई है। हर जगह नारी सशक्त हो रही है। खुलकर आवाज उठाने में लगी है। संविधान में भी देखें तो पुरुषों की तरह नारी को भी समान अधिकार दिए गए हैं। जहां पहले नारी अपनी दुर्दशा पर रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी,वहीं आज पूरी तरह आवाज उठाने और हक जताने से पीछे नहीं हैं। आज हर मुकाम पर अपने-आपको साबित कर चुकी है।
भारतीय संस्कृति में भी नारी को बहुत ही सम्मान और महत्व दिया गया है। धरती पर नारी के अनेक रूप हैं। नारी को दुर्गा,काली,चंडी एवं सरस्वती के रूप में मानने वाले लोगों की मानसिकता कहाँ लुप्त हो गई है,समझ नहीं आ रहा। नारी की स्थिति में पहले की तुलना में काफी हद तक सुधार हुआ है। नारी शिक्षा को बढ़ावा मिलने से आज महिला प्रगति पथ पर अग्रसर होती रही है। राजनीति हो या व्यवसाय,हर जगह नारी की भागीदारी है। नारी के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं है। इसके बिना यह सृष्टि अधूरी है।
भारतीय समाज को हमेशा पुरुष प्रधान माना गया, लेकिन अब २१वीं सदी में पूरी तरह से बदलाव आया है। आज नारी पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं,फिर भी जो सम्मान,इज्जत नारियों को मिलनी चाहिए,वह मिल नहीं रही है। जिस तरह के अमानवीय व्यवहारों से वह गुजरती है,उसका अंदाजा भी शायद लगाना मुश्किल है। एक तरफ हम उन्हें आगे बढ़ाने की बात करते हैं,दूसरी तरफ अभद्रता की हद पार करते हैं। आजकल महिलाओं, छोटी बच्चियों के साथ अभद्रता की सारी सीमाएं टूट गई है। आज एक भी दिन ऐसा नहीं जाता,जब हम बलात्कार जैसी अभद्रता की घटना नहीं सुनते हैं। ४ महीने की बच्ची से लेकर महिलाएं तक सुरक्षित नहीं है। आज फिर इक्कीसवीं सदी में पहुँचकर भी समाज की सोच नहीं बदल रही है।
विडम्बना कि अपने ही घर में वह सुरक्षित नहीं होती,घरों में भी शोषित हो रही है। समाज किस ओर जा रहा है,एक बार चिंतन करके देखें। कानून नहीं,हमें सोच बदलनी होगी। लड़कों को नारी का सम्मान करना सिखाना होगा। समाज के सभी लोगों और कानून-व्यवस्था से आगे अपेक्षा होगी कि,लाचारी,बेबसी और तड़प से नारी बाहर निकल सके। एक समय ऐसा लाएंं…जहां बच्चियां,औरतें बेखौफ होकर घूमें। आशा है सम्मान,बेखौफ, आजादी और बेबाकपन से जीने का अधिकार जरूर मिलेगा। खुद को बदलें,बच्चों को अच्छे संस्कार दें। भारतीय संस्कृति में नारी के महत्व और सम्मान को बताएं,समझाएं। माँ और बेटियों के पवित्र रिश्ते को बताएं। मानसिकता बदलेगी,तभी सब-कुछ बदलेगा। नजरिया बदलें.. सोच बदलेगी.. तभी गंदी मानसिकता से आजादी मिलेगी। बच्चियों को सम्मान देना बचपन से बतलाएं,तभी सोच अच्छी रहेगी,नारी के प्रति सम्मान रहेगा। नई सोच से नया बदलाव लाएं,तो नारी और भी सशक्तिकरण की तरफ कदम आगे बढ़ा पाएगी। नारी पूरी तरह सशक्त हो उठेगी,बस जरूरत है समाज में थोड़े से बदलाव एक और पहल की।

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