हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:२१२ २१२ २१२ २१२)
साल बीता पुराना,नया आ रहा।
अलविदा और शुभ आगमन पा रहा॥
साल बीता पुराना…
अलविदा बीसवां साल अब पा रहा,
साल इक्कीसवाँ जो दिये जा रहा।
साल दो हैं मगर है सदी एक ही,
एक जाने को है दूसरा आ रहा।
साल बीता पुराना…
कुछ दिया है हमें कुछ लिया भी मगर,
वक्त गुजरा यही एक बेहतर खबर।
आ रहा अब जो वो भी तो कुछ लाएगा,
अब मिलेगा नही जो चला जा रहा।
साल बीता पुराना…
जिन्दगी आज है कल की किसको खबर,
वक्त की तो न रहती कोई भी डगर।
प्यार से सब गुजारें जो लम्हें मिले,
अब मिलेगा नहीं साल जो जा रहा।
साल बीता पुराना…
उम्र तो चाहती ये हमेशा रहे,
वक्त के पर नियम ये गुजरता रहे।
दे विधाता वही जो करम् से बने,
पर करम् वक्त जैसे न जो आ रहा।
साल बीता पुराना…
चाँदनी जब रहे धूप आती नहीं,
चाँद सूरज गगन से निभाते यही।
बात ये ही तो सुख-दुख की रहती मगर,
ये बिना समझे जीवन कटा जा रहा।
साल बीता पुराना…॥
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।