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बचा लो न,माँ मुझे…

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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माँ…
मैं बोल रही हूँ,
इधर-उधर
क्या देख रही हो…?
मैं तुम्हारी
कोख़ में
पल रही हूँ,
तुम्हारी अजन्मी बेटी।
माँ तुमने,
दादी और पापा की
बातें सुनी ?
वो कह रहे थे कि,
कल वो मुझे
तुमसे अलग कर देंगे।
कल अस्पताल में,
डॉक्टर मुझे
तुम्हारी कोख़ से
ज़ुदा कर देंगे।
माँ,मेरी प्यारी माँ
मुझे हाथ में,
छुरी-कैंची लिए
डॉक्टर से,
बहुत डर लगता है।
वो मेरा खून कर देगा,
मिटा देगा
मेरा अस्तित्व,
दुनिया में
आने से पहले ही।
माँ तुम तो,
मेरी माँ हो
तुम तो,
अपने अंदर मेरी
हरक़त को,
अनुभव कर सकती हो
बचा लो न,
माँ मुझे।
आने दो मुझे,
देखने दो मुझे
ये सुंदर दुनिया।
माँ मैं जानती हूँ,
तू मुझे बहुत
प्यार करती है,
पर डरती है
पापा और दादी की
निरकुंशता से।
माँ,तुम माँ हो,
अपने अंदर की
ममता को पहचानो।
थोड़ी हिम्मत करो,
एक आवाज़ उठाओ…
इन पुरानी
कुरीतियों के ख़िलाफ़,
मेरी शक्ति अपने भीतर
अनुभव करो,
मैं तुम्हारे साथ हूँ।
मेरे आने से तुम्हें,
ममत्व का सुख मिलेगा
माँ में छोटे-छोटे
हाथों से,
तुम्हारे आँसू
पोंछ दूंगी।
जब मैं तेरी गोद में,
किलकारियां मारूंगी
तुम भूल जाओगी
अपने सारे दु:ख।
जब मैं तोतली
ज़ुबां से तुम्हें माँ कहूँगी,
निहाल हो जाएगी तू।
माँ एक बार तो सोच,
मेरे बारे में…!
मैं तेरा ही हिस्सा हूँ
तेरा ही प्रतिबिंब हूँ,
मेरे अस्तित्व को
स्वीकार कर लो।
मुझ अजन्मी को,
जन्म लेने दो॥

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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