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कर न सके दीदार…

हरीश बिष्ट
अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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दिल से दिल के प्यार का,कर न सके दीदार।
जी भर अपने यार का,कर न सके दीदार॥

मन में थी सूरत बसी,होंठों पर था नाम।
प्यार भरे मनुहार का,कर न सके दीदार॥

जब तक थे हम साथ में,कर न सके तब बात।
खुशियों के संसार का,कर न सके दीदार॥

मन ही मन में था किया,हमने उनसे प्यार।
अपने इस इजहार का,कर न सके दीदार॥

सदा पराई हो चली,हमसे हमरी प्रीति।
उसके उस इनकार का,कर न सके दीदार॥

परिचय– हरीश बिष्ट की जन्मतारीख ३० जुलाई १९८० है। वर्तमान में मोतीबाग(नई दिल्ली) में रहते हैं, जबकि स्थाई निवास ग्राम-मटेला (रानीखेत),जिला-अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)है। एम.ए.(अर्थशास्त्र) तक शिक्षित श्री बिष्ट का कार्यक्षेत्र-नौकरी है। लेखन विधा-कविता एवं गीत है। सांझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएं आ चुकी हैं तो पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में सांझा काव्य संग्रहों सहित रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान,आखिल भारतीय साहित्य परिषद से सर्वश्रेष्ठ सहभागिता के लिए सम्मान पत्र, ‘भारत विभूति’,’काव्य अरुणोदय’ आदि हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-साझा काव्य संग्रह-अर्पण, अभिव्यक्ति,नवचेतना,अरुणोदय और भावकलश है। पसंदीदा लेखक-जयशंकर प्रसाद को मानने वाले श्री बिष्ट के लिए प्रेरणा पुंज-आनन्द वर्धन शर्मा हैं। विशेषज्ञता-साहित्यिक रचनाओं का सृजन ही विशेषता है एवं उसी ओर प्रयासरत हैं। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने-आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने इस पावन धरती पर जन्म लिया, जिसके लिए सदैव इस मातृभूमि का ऋणी रहूँगा। हिन्दी भाषा,हमारी मातृ-भाषा है,और मुझे गर्व है अपनी इस मातृ-भाषा पर। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के तहत नवसृजन करते हुए आपना योगदान देने के लिए सदैव प्रयासरत हूँ।

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