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मेरा गाँव दिखा दो

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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कोयल का संगीत सुना दो,
मुझको मेरा गाँव(अवलेश्वर)दिखा दो।

कंक्रीटों के हवा महल में,
फंसा हुआ मेरा जीवन है
झूठी आशा बड़ी पिपासा,
रूप धरे नित नूतन है।
कैसी है ये मूक विवशता,
मानव का संवाद मन्द है
रिश्ते सारे पड़े दुआरे,
मेरे मन तो छिड़ा द्वन्द है।
विष की इस गगरी को,
जाकर के तालाब सिरा दो।
मुझको मेरा गाँव दिखा दो॥

कच्ची सड़क दुआरे की,
गुमसुम से चौराहों की
जहाँ बैठ अक्सर खेला,
सुनकर बात बहारों की।
चड्ढी पहने बागों-बागों,
मिठुआ अम्बियां तोड़े थे
देख हमें गणेश काका,
जहां डंडा लेकर दौड़े थे।
उन्हीं आम के पेड़ों को,
जाकर मेरा नाम बता दो।
मुझको मेरा गाँव दिखा दो॥

सौंधी-सौंधी बारिश की,
खुशबू जब-जब आई थी।
बाबा वाले उस कमरे में,
अम्मा पकौड़ी लाई थी।
बैठ जहाँ बेपरवाही से,
दोनों हाथों हम खाते थे
गोदी चढ़ बूढ़े बाबा की,
हम तो झट सो जाते थे।
ऐसे भोले बिना दांत के,
बाबा की इक चुम्मी दिला दो।
मुझको मेरा गाँव दिखा दो॥

झूले पड़े हुए डालों में,
बल खाती सरसों खेतों में
लोट रहे हैं भोले बाबा,
भाँग चढ़े शिवालों में।
कजरी सोहर गीतों की,
लगी हुई हैं आज कतारें
गरजे-तरजे बदरा में,
नाच उठे हैं मोर कि सारे।
ऐसी उन्मादी बरखा का,
आज मुझे अमृत चखा दो।
मुझको मेरा गाँव दिखा दो…॥
(अवलेश्वर=गाँव)

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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