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षटरस प्रदान करतीं कविताएँँ जीवन वीणा

राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
टीकमगढ़(मध्यप्रदेश) 
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अनीता श्रीवास्तव बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। शिक्षण कार्य करने के साथ-साथ साहित्य लेखन में भी रुचि रखती हैं। उनका काव्य संग्रह ‘जीवन वीणा’(अंजुमन प्रकाशन,प्रयागराज) अपने १८४ पृष्ठों के आकार में ढेर सारी कविताओं को समेटे है। इसे लेखिका ने ४ प्रमुख भागों में बाँटा है-भाग-१ में ७७ कविताएँ,भाग-२ में ४६ गीत,भाग-३ में १५ बालगीत,एवं भाग-४ में क्षणिकाएँ प्रकाशित की गयी हैं। यह इनका प्रथम प्रयास है,इसलिए अनीता जी ने एक ही संग्रह में सब कुछ पेश किया है। यदि इस संग्रह को केवल एक ही विधा विशेष लेकर प्रकाशित करतीं,तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता। रचनाएँ बढ़िया लिखी गयी हैं। भूमिका वरिष्ठ लेखक प्रभुदयाल मिश्र ने तो सम्मति संतोष सोनकिया नवरस ने लिखी है।
इस संगह में जो कविताएँ बहुत अच्छी लगी,उनमें काव्य संग्रह के प्रारंभ में ‘वंदना’ करती हुई वे कहती हैं-‘तेरी शक्ति से जीवन संवरता रहे…। दीप जलता रहे,दीप जलता रहे…।’
‘पहचान‘ रचना में लिखतीं हैं-‘जब तुमने मुझे पहचाना ही नहीं/मेरे होने का क्या अर्थ/मैं रहूँ भी तो न रही सी।’
‘हिंदी दिवस’ में वे हिंदी की दशा को उजागर करती हुई लिखती हैं-जो ओरों के साथ करते हैं,मातृभाषा के साथ भी कर रहे हैं। हिंदी दिवस और पखवाड़ा मनाकर उसे भी छल रहे हैं।’ इस कविता में उन्होंने हिन्दी के शब्दों को कैसे लोग भूलकर अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं,उस पर व्यंग्य किया है।
‘भूख’ कविता में यर्थाथ का चित्रण करती हैं-‘खाली पेट आदती/भरी दूनिया की पीड़ा है/उसकी भूख जख्म है इंसानी दुनिया की देह पर/तो फिर देते क्यों नहीं उसे/ उसके हिस्से की रोटी/जबकि दुनिया में बराबर-बराबर है/ पेट की भूख। ‘किसान की विधवा’ कहानी किसानों की हकीकत को व्यक्त करती एक बेहतरीन रचना है-मर गया पेड़ पर लटककर/मौत रह गई मुझमें अटकर/दुनिया में हल्ला है अन्नदाता मर रहा है/मर तो मैं रही हूँ/ हर साँस में सौ बार/ चुपचापll ‘अस्पताल में मासूमों की मौत’ एक सत्य घटना पर आधारित कविता है-सावधान! जो ऑक्सीजन जा नहीं सकी थी/मासूमों के फेफड़ों में/घूम रही है वायुमंडल में/कुपित दुर्वासा की तरह श्रापित जल लिए कमंडल में वह ऑक्सीजनll ‘भाई’,भाई-बहिन के प्रेम को दर्शाती मार्मिक कविता है-मेरा भी ले अपना भी रख/भाई तू हिस्सा मत दे प्रेम बनाए रखll ‘जीवन किरण’ इस संग्रह की शीर्षक रचना है-माँ तुम इतना क्यों रोती हो/मेरे सर आँचल फैलाकर। तुम मेरे सपने में आकर या फिर मुझे अकेला पाकरll ‘आतंकवाद’ पर चोट करती सटीक रचना-खुशी बेचते हैं ये ग़म बेचते हैं। लेकर दुकानें धरम बेचते हैं। श्रृंगार रस ‘प्यार तुम्हारा’ रचना देखें-दिन के जैसा है न चाँदनी रात जैसा है। प्यार तुम्हारा इक सिंदूरी शाम जैसा है। ‘लड़कियाँ’,बेटियाँं पर केन्द्रित अनीता जी ने अनेक कविताएँ लिखी हैं। वे लिखती हैं-उम्रभर महकता रहता ख़्वाब होती है,लड़कियाँ गुलाब होती है। बाल कविता भाग में अनेक बाल कविताएँ अच्छी हैं- ‘चलो स्कूल’ एक प्रेरणादयक है,तो ‘अम्मा बोल,अम्मा बोल’ क्यों है रोटी गोल बच्चों में जिज्ञासा पैदा करती है।
क्षणिका भाग-४ में शेर,कता,मुक्तक और क्षणिकाएँ है मुझे कुछ बेहतरीन लगे हैं। यथा-कोई नहीं समझ पाया कि पंख कहाँ से जुड़ जाते हैं। यहीं पड़ा रह जाएगा पिंजर प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
कुल मिलाकर अनीता जी का ‘जीवन वीणा’ काव्य संग्रह प्रथम प्रयास है,जो सराहनीय है। कविताएँ भाव गत धरातल पर अच्छी बन पड़ी हैं। उनके विचारों की अभिव्यक्ति बढ़िया है। संग्रह थोड़ा बड़ा जरूर है,लेकिन पठनीय है,क्योंकि इसमें पाठक को षटरस का आनंद प्राप्त होगा।

परिचय-राजीव नामदेव का उपनाम ‘राना लिधौरी’ हैl जन्म तारीख १५ जून १९७२ और स्थान लिधौरा हैl मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में आपका निवास हैl इनकी शिक्षा-बी.एस-सी.(कृषि),एम.ए.(हिंदी),पी.जी.डी.सी.ए.(कम्प्यूटर)हैl लेखन विधा-कविता,ग़ज़ल,हायकू,व्यंग्य,क्षणिका, लघुकथा,कहानी एंवं आलेख आदि है। प्रकाशन में आपके खाते में-अर्चना (कविता संग्रह,१९९७),रजनीगंधा (हायकू संग्रह २००८) सहित `नौनी लगे बुदेली’ (विश्व में बुंदेली का पहला हाइकु संग्रह,२०१०) और ‘नागफनी का शहर (व्यंग्य संकलन) आदि १० हैंl आपने ‘दीपमाला` और `जज़्बात` का उप-संपादन किया हैl कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग डेढ़ हज़ार रचनाओं का प्रकाशन हुआ हैl कवि-सम्मेलनों एवं मुशायरों में शामिल होने वाले श्री नामदेव के ११ अप्रकाशित संग्रह भी हैं। आप इक पत्रिका के सम्पादक(२००६ से आज तक)भी हैंl चैनल एवं दूरदर्शन सहित आकाशवाणी छतरपुर केन्द्र से भी इनकी रचनाओं का प्रसारण हुआ हैl १८ प्रदेशों से ८१ साहित्यिक सम्मान आपको प्राप्त हैं जिसमें २ राज्यपालों द्वारा प्रदत्त हैं। विशेष में अब तक २४१ साहित्यिक गोष्ठियों-कवि सम्मेलनों का संयोजन-आयोजन कर चुके हैंl ब्लॉग पर भी लिखने वाले श्री नामदेव संप्रति से सम्पादक(पत्रिका)और लेखक संघ के २००२ से आज तक अध्यक्ष होने के साथ ही अन्य साहित्यिक संस्थाओं में पदाधिकारी भी हैंl

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