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सिपाही

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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“अनिल भाई,आजकल दिखते नहीं हो। कहां,बिजी रहते हो ?”
“राकेश जी,नौकरी की ड्यूटी में लगा रहता हूँ।”
“अरे,तो इसका मतलब,क्या हम नौकरी नहीं कर रहे ?”
“ऐसी बात नहीं,आप भी कर रहे हैं,पर ऑफिस की बाबूगिरी और पुलिस के सिपाही की नौकरी में बहुत अंतर है ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि,इस समय हम इमरजेंसी सेवा में लगे हुए हैं,हमारी ज़रा-सी लापरवाही देश और लोगों के लिए मंहगी पड़ जाएगी।”
“अरे अनिल,बहाना बनाकर छुट्टी लो,और ऐश करो।”
“नहीं जी,यह मुसीबत का काल है,तो क्या हमें पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी से न्याय नहीं करना चाहिए।”
“अरे,छोड़ो तुम भी। अब तुम मुझे ही ज्ञान बांटने लगे।”
” नहीं भाई,इसमें ज्ञान की क्या बात है,मैं तो अपने दिल की बात कह रहा हूँ।”
दो दोस्त मोबाइल पर ये बातें कर ही रहे थे कि,तभी सड़क पर दो मोटरसाइकिलें ज़बरदस्त ढंग से एक-दूसरे से भिड़ गईं। दोनों गाड़ियों के सवार छिटककर दूर जा गिरे। एक तो,जो अधिक घायल नहीं हुआ था,तत्काल खड़ा हो गया,पर दूसरा जो बहुत घायल हुआ था,वह अचेत हो चुका था। तत्काल ही एम्बुलेंस को बुलाकर ड्यूटी पर तैनात सिपाही अनिल उसे अस्पताल लेकर पहुंचा। उसकी जाँच करते ही चिकित्सक ने कहा कि घायल को लाने में अगर थोड़ी देर और हो गई होती,तो उसे बचाना मुश्किल होता।
घायल विवेक के पर्स में रखे आधार कार्ड से उसके पालक का सम्पर्क नम्बर लेकर जब बुलाया गया,और उसके पिता आए,तो अनिल ने पाया कि विवेक तो उसके उसी दोस्त राकेश का ही बेटा है,जो कुछ देर पहले ही उसे मोबाइल से अपनी ड्यूटी से बचने के उपाय बता रहा था।

सच्चाई जानकर राकेश अनिल से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था,वह बगलें झांकने लगा था।

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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