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‘रिसॉर्ट’ का खेल

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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मध्यप्रदेश में जो ‘रिसॉर्ट’ का खेल अभी चल रहा है,वह पूरे देश में चर्चा में है। कुछ लोग तो ऐसे हैं,जिन्होंने रिसॉर्ट का नाम ही इससे पहले कभी सुना नहीं था। हाँ,इससे पहले ‘फार्म हाऊस’ प्रयोग राजनीति में होते रहे हैं, लेकिन अबकि बार मध्यप्रदेश में जो रिसॉर्ट प्रयोग हुआ,उसके कारण इन रिसॉर्टस् की प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी हुई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को बैंगलोर,कांग्रेस समर्थकों को जयपुर व भाजपा समर्थकों को हरियाणा के रिसॉर्ट में ले जाया गया,तो मीडिया में सुबह से लेकर देर रात तक केवल रिसॉर्ट पर ही चर्चा का दौर चल रहा है।
पिछले कुछ सालों से रिसॉर्ट का नाम जिस तरह से हमारे देश की राजनीति में स्थापित हुआ है,उससे लगता है कि ये स्थान देश के बड़े शहरों में किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। रिसॉर्ट अब राजनीति के केन्द्र बन गए हैं। जिसके पास भी थोड़ा रसूख है,और २०-२५ एकड़ जमीन है वो सबसे पहले अपने फार्म हाऊस को रिसॉर्ट बनाना चाहता है। चाहे भी क्यों नहीं,आखिर एक न एक दिन उनका रिसॉर्ट भी राजनीति का महातीर्थ बन सकता है। प्रदेश या देश की सरकार बदलने में अहम योगदान दे सकता है,और भविष्य में ऐतिहासिक स्थल का दर्जा पा कर लोक पर्यटन का अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक बन सकता है। ‘कोरोना’ जैसा अन्तर्राष्ट्रीय विषाणु (वायरस) भी रिसॉर्ट राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। शीर्ष पर रहने वाला कोरोना परोक्ष में चला गया।
रिसॉर्ट से जब भी राजनीति के प्यादों के कम-ज्यादा होने के नए आँकड़े आते हैं तो देश-विदेश का मीडिया बड़े चटखारे लेकर आँकड़ों का कम,रिसॉर्ट के बाहर से उसकी भव्यता का बखान ज्यादा करता है। कईं बार समझ ही नहीं पाते हैं कि हम समाचार देख रहे हैं,या रिसॉर्ट का विज्ञापन! पत्रकार इस रिसॉर्ट महातीर्थ की बार-बार महिमा बता कर आपके और मेरे जैसे सामान्य आदमी पर पारिवारिक दबाव बनवाकर जीवन में एक बार यहाँ की यात्रा को मजबूर कर देता है। घर के लोग भी एक स्वर में इस महातीर्थ की यात्रा यह सोच कर करने को आतुर रहते हैं कि मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा,धरती का स्वर्ग तो ये रिसॉर्ट ही है,आओ यही देख लें, और अपने मन को तृप्त कर लें।
वैसे सामान्यजन की तो औकात ही क्या जो यहाँ की सैर करे,यदा-कदा ब्याह- शादी में मेहमान बन कर गए होंगे या जीवन में १-२ बार अपने निजी खर्च पर बच्चों-पत्नी की जिद के सामने कसमसाते हुए गए होंगे, लेकिन जो लोग विधायक और सांसद बनते हैं,उनको तो अपने कार्यकाल के दौरान इस दिव्य जगह जाने का सुख स्वतः ही मिलने लगा है। इनको हफ्तों मजा लेने का देव दुर्लभ मौका पार्टी के खर्च पर ही मिल जाता है,वो भी ‘वीआईपी’ आवभगत के साथ। बिना घरवाली या घरवाले के घर से बेहतर माहौल वाले ये तीर्थ स्थान वैसे तो इन नेताओं के लिए बंदीघर है,लेकिन जब नरक में भी अप्सराएँ सोम रस का पान कराए तो उस स्थान को भी सामान्यजन स्वर्ग से कम नहीं मानेंगे। रिसॉर्ट वैसे भी धरती पर स्वर्ग जैसा आनंद लेने के लिए बनाए गए हैं,और सब जानते हैं कि स्वर्ग जाने के लिए मरना जरुरी है। मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता। इन रिसॉर्ट में कैद हुए विधायक जानते हैं कि वे स्वर्ग में हैं या नरक में और रिसॉर्ट मुक्त होने के बाद वे पुण्य फल बांटेंगे या पाप का प्रसाद,ये तो भविष्य ही बताएगा।

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