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प्रकृति रचे श्रृंगार

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

भिन्न-भिन्न मौसम यहाँ,नाना ऋतु प्रदेश।
सर्द गर्म बरसात है,नाना भाषा वेशll

तिल के लड्डू रेवड़ी,चूरा बाटी दाल।
खाकर ख़ुशी मनाइए,करिये सभी धमालll

ऋतुओं के अनुरूप ही,प्रकृति रचे श्रृंगार।
गर्मी में लगने लगे,धरती भी अंगारll

पीली सरसों से लगे,आया है ऋतुराज।
कोयल मीठे बोल से,करती है आगाजll

ऋतु परिवर्तन दौर है,मिलता है संदेश।
सूर्य मकर में कर रहा,इस काल में प्रवेशll

लगती बड़ी सुहावनी,शीतल ऋतु में धूप।
मूंगफली अरु रेवड़ी,लगती गजक अनूपll

जाड़े के दिन आ गए,थर-थर कांपे गात।
जाड़ा अब तो दे रहा,सूरज को भी मातll

जाड़े का अब जोर है,जलने लगे अलाव।
किट-किट करते दाँत भी,कांप रहे हैं पाँवll

जिनके तन कपड़े नहीं,करे झोपड़ी वास।
करो मदद उनकी सभी,होवे कोई पासll

जाड़े में मिलके करो,गरम वस्त्र का दान।
जो निर्धन असहाय है,बचे सभी की जानll

मकर संक्रांति पर्व है,खुशियों का आगाज।
सभी मनाते हैं इसे,अपने ही अंदाजll

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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