कुल पृष्ठ दर्शन : 294

You are currently viewing पतंग और डोर

पतंग और डोर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

***********************************

मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….


पौष मास नववर्ष मुदित मन,
पर्व मकर संक्रान्ति मनाएँ।
खुशियों के मकरन्द बाँटकर,
जीवन व्योम पतंग उड़ाएँ।

सतरंग चारु बहुरंग गगन,
नवाभिलाष पतंग उड़ाएँ।
क्षणिक श्वाँस की डोर थामकर,
आओ मिलजुल साथ निभाएँ।

तजें स्वार्थ मन छल कपट झूठ,
सद्भावित मन मीत बनाएँ।
अरुणिम प्रभात सुनहर भविष्य,
नभ लक्ष्य क्षितिज पतंग उड़ाएँ।

धरा हरित भरित किसान मुदित,
नयी फ़सल आनंद मनाएँ।
नृत्य गीत संगीत मनोहर,
विकास व्योम पतंग उड़ाएँ।

जाति धर्म विरत निर्भेद जगत,
सद्नीति प्रीति राह बनाएँ।
नीलाभ गगन हैं डोर बहुत,
पतंग काट से ख़ुद बचाएँ।

समझ डोर जीवन का लघुतर,
संघर्ष कँटिल सुलभ बनाएँ।
संकल्प ध्येय उत्थान अटल,
बना धवल कीर्ति पतंग उड़ाएँ।

पुरुषार्थ डोर साहस अम्बर,
रहें होश ख़ुद जोश बढ़ाएँ।
जीवन पतंग बहुत विघ्न गगन,
मति विवेक बल डोर उड़ाएँ।

पछवा पुरवैया बहे पवन,
मन्द-मन्द हम डोर बढ़ाएँ।
विश्वास स्वयं हो विजयी पथ,
नव उड़ान नभ कदम बढ़ाएँ।

जीवन पतंग उड़ती अम्बर,
धर्म अर्थ सद्मार्ग बनाएँ।
न्याय त्याग सहयोग प्रीति मन,
पलभर जीवन स्वर्ग बनाएँ।

मकर लोहड़ी बिहू पोंगल,
खुशियों का संसार बनाएँ,
समरसता नवरंग प्रेम मय,
नित जीवन पतंग उड़ाएँ।

कटे डोर कब अनुपम जीवन,
चलें अधर मुस्कान जगाएँ।
मानवता नैतिक रक्षक बन,
उड़ पतंग जीवन्त बनाएँ।

अमर गीत बलिदान देश पर,
विजय वीर योद्धा बन पाएँ।
कटे डोर उससे पहले हम,
तिरंग पतंग हम व्योम उड़ाएँ।

शान्ति चैन सुखमय हो जीवन,
लोहड़ी आग द्वेष जलाएँ।
मकर राशि परिवर्तन द्योतक,
पौष मास अरुणाभ बनाएँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply