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धर्म-ध्वजियों के आचरण पर कड़ी निगरानी और असाधारण सजा जरुरी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पोप फ्रांसिस बधाई के पात्र हैं,जिन्होंने आखिरकार केरल के पादरी राॅबिन वडक्कमचेरी को ईसाई धर्म से निकाल बाहर किया। ‘आखिरकार’ शब्द…?,इसलिए कि इस पादरी को केरल की एक अदालत ने बलात्कार के अपराध में ६० साल की सजा कर दी थी,इसके बावजूद पोप ने सालभर से इस पादरी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। केरल के केथोलिक चर्च ने भी इस पादरी को दंडित नहीं किया। सिर्फ उसकी पुरोहिताई को मुअत्तिल कर दिया। २०१७ में एक ईसाई लड़की से इस पादरी ने कई बार बलात्कार किया और जब इस पर मुकदमा चला तो इसने कनाडा भागने की कोशिश भी की। इसने कई गवाहों को पल्टा खिला दिया। जब उस १६ साल की लड़की ने बच्ची को जन्म दे दिया तो इस पादरी ने उस लड़की के बाप से यह बयान दिलवा दिया कि यह बच्ची का पिता वह पादरी नहीं,मैं हूँ। बाद में उस लड़की ने इस पादरी से शादी करने की गुहार भी लगाई लेकिन अदालत ने इन सारी तिकड़मों को रद्द करते हुए राॅबिन को जेल के सींखचों के पीछे भेज दिया। केरल की पुलिस ने उस बलात्कृत लड़की के पिता के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया है। यहां असली सवाल यह है कि चर्च,मस्जिद,मंदिर और गुरुद्वारों से इस तरह की काली करतूतों की खबरें क्यों आती हैं ? ये तो भगवान के घर हैं। इनमें बैठनेवाले साधु-संन्यासी,पंडित,मुल्ला,पादरी वगैरह तो अपने आपको असाधारण पुरुष मानते हैं। इनकी असाधारणता ही इनका कवच बन जाती है। इन पर लोग शंका करते ही नहीं हैं। इस तरह के धर्म-ध्वजियों पर सबसे ज्यादा शंका की जानी चाहिए। उनके आचरण पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए। जब ये किसी भी प्रकार का कुकर्म करते हुए पकड़े जाएं तो इन्हें असाधारण सजा दी जानी चाहिए। यूरोप और अमेरिका में पादरियों के व्यभिचार और बलात्कार के हजारों किस्से सामने आते रहते हैं,लेकिन उन्हें ऐसी तगड़ी सजा कभी नहीं मिलती,जो कि भावी अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी मचा दे। रोमन केथोलिक चर्च में ब्रह्मचर्य पर जरुरत से ज्यादा जोर दिया जाता है,जैसे हमारे यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में दिया जाता है। भारत में तो यह जोर किसी तरह निभ जाता है,लेकिन गोरे देशों में इसके उल्लंघन में ही इसका पालन होता है। यदि ईसाइयत के अंधकार-युग के एक हजार साल का इतिहास देखें तो खुद कई पोप ही बलात्कार और व्यभिचार करते हुए पकड़े गए हैं। वह दिन कब आएगा,जब भारत के पादरियों के ऊंचे और पवित्र चरित्र का सिक्का सारी दुनिया में चमकेगा ?

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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