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भारतीयता अपनाएं, ‘कोरोना’ भगाएं

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’
बसखारो(झारखंड)
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‘कोरोना’ से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी २२ मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया है। बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कह रहे हैं कि,श्री मोदी का यह विचार(तरकीब)पश्चिमी देशों की नकल है। शायद उन्हें पता नहीं कि,ताली बजाने का नुस्खा तो सदियों से वेद पुराण में है। पूजा के बाद आरती में लोग तालियां बजाते हैं,उससे न केवल रक्त संचार होता है बल्कि कई बीमारियों से बचाव होता है। हमारी हथेली और तलवे में पूरे शरीर के नसों के बिंदु होते हैं। ताली बजाने से उनमें दबाव पड़ता है,जिससे पूरे शरीर का रक्त संचार सही होता है। ताली बजाने से एक ऊर्जा मिलती है। आज के सभी विचार हमारे प्राचीन ग्रंथों में पहले से ही हैं,जिसे कुछ लोग ढकोसला बताते रहे पर आज वही अपना रहे हैं। शाकाहार,नमस्कार,योग,व्यायाम,संयम सब-कुछ पहले से है। बीमारियां तो आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की देन है। हवन की समिधा में धूप,गुग्गुल,मधु,घी, नवग्रह की लकड़ियां सहित कई तरह की सामग्री को जलाते हैं,जिससे वातावरण के सारे कीटाणु और विषाणुओं का अंत होता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है। हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ हथेली में मौजद कीटाणुओं का नाश कर देती है और स्वतः प्रक्षालक या शुद्धक(सेनिटाइजर) का काम करती है। आज कोरोना के भय से दिन में १० बार लोग प्रक्षालक(रासायनिक वस्तु)का उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह प्रसाद में तुलसी के पत्ते को डाला जाता है,उसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रसाद में अगर कोई जहरीला पदार्थ मिला होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा और शुद्ध होने पर प्रसाद कितना भी गर्म हो,तुलसी का पत्ता हरा ही रहेगा। प्रसाद के साथ हम तुलसी को भी खाते हैं जो रोगों से बचाव करता है। आज चिकित्सक भी तुलसी के पत्ते को खाने की सलाह दे रहे हैं। इसी तरह शंख बजाने से न केवल हमारी श्वांस प्रणाली सुदृढ़ होती है, बल्कि पूरे वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त करती है। यह विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया हैं कि शंख की ध्वनि से आसपास के वातावरण से कीटाणुओं का नाश हो जाता है। सूर्य नमस्कार के १२ चरणों में शरीर का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसलिए स्नान कर व हाथ-पैर धोकर जाने का विधान है,ताकि आप शुद्ध-कीटाणु रहित होते रहें। नित्य कर्म पद्धति में शौच क्रिया के पश्चात और भोजन से पूर्व हस्त प्रक्षालन के जितने चरण बताए गए हैं,आज हम उसी हाथ धुलाई(हैंड वाश) के ७ चरणों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। पहले अस्पताल या शौच से आने के बाद स्नान करके घर में प्रवेश की इजाज़त थी,जिसके पीछे का तथ्य यही है कि आप संक्रमण से स्वच्छ होकर ही घर में घुसें,ताकि अन्य लोग प्रभावित न हों। पहले लोग जूते-चप्पल घर के बाहर ही रखते थे ताकि कीटाणु-विषाणु घर में प्रवेश न कर सकें। हिन्दू धर्म में शवों के दाह संस्कार का विधान है जिसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य है कि जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। आज कोरोना के मामले में भी यही प्रकिया अपनाई जा रही है। हमारी संस्कृति हाथ जोड़कर नमस्कार करने की रही है,क्योंकि इससे संक्रमण होने का खतरा नहीं होता,जबकि पश्चात्य संस्कृति में आलिंगन-चुंबन प्रमुख है। आज कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया हमारी नमस्कार संस्कृति को अपना रही है। प्राचीन काल में शाकाहार को महत्व दिया गया है,उसमें बीमारियों का खतरा नहीं होता। कोरोना का संक्रमण माँस से ही हुआ है। आज इसके खौफ़ से मांसाहार छोड़ शाकाहारी बनने लगे हैं। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को बहुत आराम की जरूरत होती है,और बहुत जल्द संक्रमित होने का खतरा रहता है, इसलिए उन्हें मन्दिर या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से रोका जाता था। आज कोरोना संक्रमित मरीजों को १४ दिनों के पृथकीकरण (आइसोलेशन)वार्ड में रखने की सलाह दी जा रही है,जबकि यह प्रक्रिया हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। जब भी किसी को चेचक होता था,तो उसे अलग कमरे में नीम की डालियों से घिरी चारपाई में सुलाया जाता था,ताकि संक्रमण बढ़े नहीं और मरीज ठीक हो। हमारे यहां तो भगवान जगन्नाथ भी बीमार पड़ते हैं,और उन्हें कुछ दिनों के बिल्कुल ही पृथक कर आराम करने दिया जाता है। ये सारी प्रथाएं और भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है,लेकिन लोग इसे ढकोसला और अंधविश्वास बता कर मज़ाक उड़ाते रहते हैं। आज कोरोना के खौफ़ में पूरी दुनिया भारतीय संस्कृति को अपनाने पर विवश है, इसीलिए भारतीय संस्कृति अपनाओ,कोरोना जैसे खतरों को दूर भगाओ।

परिचय- पंकज भूषण पाठक का साहित्यिक उपनाम ‘प्रियम’ है। इनकी जन्म तारीख १ मार्च १९७९ तथा जन्म स्थान-रांची है। वर्तमान में देवघर (झारखंड) में और स्थाई पता झारखंड स्थित बसखारो,गिरिडीह है। हिंदी,अंग्रेजी और खोरठा भाषा का ज्ञान रखते हैं। शिक्षा-स्नातकोत्तर(पत्रकारिता एवं जनसंचार)है। इनका कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता और संचार सलाहकार (झारखंड सरकार) का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़कर शिक्षा,स्वच्छता और स्वास्थ्य पर कार्य कर रहे हैं। लगभग सभी विधाओं में(गीत,गज़ल,कविता, कहानी, उपन्यास,नाटक लेख,लघुकथा, संस्मरण इत्यादि) लिखते हैं। प्रकाशन के अंतर्गत-प्रेमांजली(काव्य संग्रह), अंतर्नाद(काव्य संग्रह),लफ़्ज़ समंदर (काव्य व ग़ज़ल संग्रह)और मेरी रचना  (साझा संग्रह) आ चुके हैं। देशभर के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको साहित्य सेवी सम्मान(२००३)एवं हिन्दी गौरव सम्मान (२०१८)सम्मान मिला है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय श्री पाठक की विशेष उपलब्धि-झारखंड में हिंदी साहित्य के उत्थान हेतु लगातार कार्य करना है। लेखनी का उद्देश्य-समाज को नई राह प्रदान करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-पिता भागवत पाठक हैं। विशेषज्ञता- सरल भाषा में किसी भी विषय पर तत्काल कविता सर्जन की है।

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