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राजभाषा अधिनियम-नियम में संशोधन संबंधी सुझाव भेजे केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री को

 

सेवा में,

श्री नित्यानंद राय,

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री,भारत सरकार

नॉर्थ ब्लॉक,नई दिल्ली।

विषय:राजभाषा के संवैधानिक उपबंधों,राजभाषा अधिनियम-१९६३ तथा राजभाषा नियम-१९७६ में संशोधन संबंधी सुझाव।

माननीय महोदय,

राजभाषा के संवैधानिक उपबंधों, राजभाषा अधिनियम-१९६३ तथा राजभाषा नियम-१९७६ में संशोधन संबंधी सुझाव विचारार्थ प्रस्तुत हैं।

#संविधान के अनुच्छेद ३४३ में संशोधन के संबंध में सुझाव-

संविधान के अनुच्छेद ३४३ में संशोधन करते हुए हिंदी को संघ की राजभाषा के बजाए संघ की राष्ट्रभाषा बनाया जाए,ताकि इसका प्रयोग जनतांत्रिक अपेक्षाओं के अनुरूप सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र पर भी लागू हो सके और निजी क्षेत्र को भी सुविधाएं व सूचनाएं जनता को जनभाषा में मिल सके।

#संविधान के अनुच्छेद ३४५ में संशोधन के संबंध में सुझाव-

संविधान के अनुच्छेद ३४५ में संशोधन करते हुए राज्यों की राजभाषाओं को राज्यों की राज्यभाषा बनाया जाए,ताकि इसका प्रयोग जनतांत्रिक अपेक्षाओं के अनुरूप सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र पर भी लागू हो सकें और निजी क्षेत्र को भी सुविधाएं व सूचनाएं जनता को जनभाषा में मिल सकें।

#राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३(३) के संबंध में सुझाव-

राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३(३) के उपबंधों के अनुसार वर्तमान में इस धारा के अंतर्गत विनिर्दिष्ट सभी कागजात हिंदी-अंग्रेजी(द्विभाषी रूप में)जारी किए जाने आवश्यक है,जबकि ‘क’ तथा ‘ख’ क्षेत्र में स्थित राजभाषा नियम १९७६ के नियम १०(२) अंतर्गत अधिसूचित कार्यालय जहाँ न्यूनतम ८० प्रतिशत कार्मिकों को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान होता है,वहाँ ऐसे अनेक कागजात को वहाँ ऐसे अनेक कागजात द्विभाषी रूप में जारी किए जाने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे कागजात केवल हिंदी में जारी किए जा सकते हैं।

ऐसे कार्यालयों द्वारा राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३(३) के अंतर्गत जारी सामान्य आदेश व परिपत्र आदि (स्थायी आदेशों आदि को छोड़कर) ऐसे कागजात जिनका परिचालन केवल उसी कार्यालय अथवा ‘क’ व ‘ख’ क्षेत्र स्थित अन्य ‘अधिसूचित’ कार्यालयों तक ही सीमित है। उन्हें हिंदी-अंग्रेजी (द्विभाषी) रूप में जारी किए जाने की अनिवार्यता के स्थान पर केवल हिंदी में जारी किए जाने का उपबंध किया जाना चाहिए। यदि किसी स्थिति में कार्यालयाध्यक्ष को जनहित में यह आवश्यक लगे कि ऐसा कोई कागज द्विभाषी रूप में जारी किया जाना आवश्यक है तो वह उसे हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी में अर्थात (द्विभाषी रूप में) जारी कर सकेगा। इससे न केवल केंद्रीय कार्यालयों में हिंदी के प्रगामी प्रयोग में वृद्धि होगी,बल्कि राजभाषा अधिनियम की धारा ३(३) के अनुपालन के लिए अनावश्यक रूप से किए जाने वाले दोहरे कार्य व अनुवाद की आवश्यकता न होने के कारण राजभाषा अधिनियम-१९६३ की धारा ३(३) के अंतर्गत जारी ऐसे कागजात शीघ्रता से जारी किए जा सकेंगे,इससे समय की बचत होगी और कार्य निष्पादन बेहतर होगा। इसके परिणामस्वरूप लेखन सामग्री की भी भारी बचत होगी। इस प्रकार यह कदम पर्यावरण के भी अनुकूल होगा।

#राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ९ के संबंध में सुझाव-

राजभाषा अधिनियम की धारा ९ में यह लिखा गया है कि राजभाषा अधिनियम की धारा ९ के उपबंध जम्मू एवं कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे,क्योंकि उक्त उपबंध संविधान के अनुच्छेद ३७० के अनुरूप नहीं थे। अब जबकि संविधान से अनुच्छेद ३७० के उपबंधों को समाप्त कर दिया गया है तथा भारत के पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य से अब जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख नामक दो संघ शासित क्षेत्र बन गए हैं,तो तद्नुसार राजभाषा अधिनियम की धारा ९ में संशोधन किया जाना अपेक्षित है।

#राजभाषा नियम १९७६ के नियम २ के अंतर्गत गोवा राज्य को ‘ग’ क्षेत्र से ‘ख’ क्षेत्र में लाए जाने के संबंध में सुझाव-

९ दिसंबर १९६१ को गोवा,दमण एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली संघ शासित प्रदेश के रूप में भारत संघ में शामिल हुआ और यह क्षेत्र राजभाषा नियम १९७६ के अंतर्गत ‘ग’ क्षेत्र में रखा गया। ३० मई १९८७ को गोवा को अलग राज्य का दर्जा दिया गया तथा गोवा भारत का २६वाँ राज्य बना। पहले की भांति गोवा राज्य तथा संघ शासित प्रदेश दमण एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली राजभाषा नियम १९७६ में ‘ग’ क्षेत्र में ही बने रहे। गोवा की भाषा संस्कृति काफी हद तक महाराष्ट्र जैसी ही है। अगर यह कहा जाए कि गोवा राज्य,महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र के समान ही है तो यह अनुचित न होगा। कोंकणी भाषा की लिपि भी मराठी की तरह देवनागरी ही है। गोवा में कोंकणी से अधिक मराठी भाषा के समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं। देश का प्रमुख पर्यटन स्थल होने के कारण भी यहाँ ज्यादातर लोग हिंदी समझते हैं तथा प्रयोग में लाते हैं। गोवा राज्य पूर्व में संघ शासित क्षेत्र रहा है और वर्तमान में भी दानिश संवर्ग के अधिकारियों के कारण इस क्षेत्र में हिंदी बहुतायत से प्रयोग होती रही है। इसलिए यह उचित होगा कि गोवा राज्य को भी राजभाषा नियम १९७६ के अंतर्गत ‘ख’ क्षेत्र में शामिल किया जाए। उल्लेखनीय है कि ठीक ऐसी ही स्थिति संघ शासित प्रदेश ‘दमण एवं दीव तथा दादर नगर हवेली’ की थी जो कि पूर्व में गोवा संघ शासित प्रदेश के साथ थे,परंतु वहां की भाषा- संस्कृति गुजरात की तरह ही थी। इस आधार पर २०११ में राजभाषा नियमों में संशोधन करते हुए संघ शासित क्षेत्र ‘दमण एवं दीव तथा दादर नगर हवेली’ को राजभाषा नियम १९७६ के अंतर्गत ‘ग’ क्षेत्र से हटाकर ‘ख’ क्षेत्र में शामिल किया गया था। जिस आधार पर संघ शासित प्रदेश ‘दमण एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली’ को ‘ग’क्षेत्र से ‘ख’ क्षेत्र में लाया गया है,ठीक उसी प्रकार गोवा राज्य को भी ‘ग’ क्षेत्र से ‘ख’ क्षेत्र में लाया जा सकता है।

#राजभाषा नियम १९७६ के नियम २ के अंतर्गत अंतर्गत संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा संघ शासित प्रदेश लद्दाख को ‘ग’ क्षेत्र से ‘क’ क्षेत्र में लाए जाने के संबंध में-

संविधान के अनुच्छेद ३७० के हटने से पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य की राजभाषा उर्दू थी। विचारणीय है कि भाषिक स्तर पर हिंदी व उर्दू में कोई विशेष अन्तर नहीं है। उर्दूभाषा का प्रयोग मुख्यत: ‘क’ क्षेत्र में ही है। उल्लेखनीय है कि अरबी-फारसी भाषाओं से आए कुछ शब्दों और फारसी की लिपि के अलावा व्याकरण और भाषा के स्तर पर तो उर्दू हिंदी ही है। देश का प्रमुख पर्यटन स्थल होने के कारण भी यहाँ ज्यादातर लोग हिंदी समझते हैं और प्रयोग में लाते हैं। जम्मू क्षेत्र में तो वैसे भी हिंदी काफी प्रचलित है। यहाँ यह उल्लेख करना उचित होगा कि,महाराष्ट्र,पंजाब आदि राज्यों,जो ‘ख’ क्षेत्र में हैं,उनसे कहीं अधिक हिंदी वर्तमान संघ शासित प्रदेश जम्मू–कश्मीर तथा लद्दाख में बोली व समझी जाती है। ऐसे में इस क्षेत्र को ‘ग’ क्षेत्र में रखना किसी भी तरह उचित प्रतीत नहीं होता। संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा संघ शासित प्रदेश लद्दाख के गठन के पश्चात प्रशासनिक कार्य हिंदी में किया जाना अपेक्षित है। इसलिए भी यह उचित प्रतीत होता है कि,संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा संघ शासित प्रदेश लद्दाख को राजभाषा नियम १९७६ के नियम २ के अंतर्गत गोवा राज्य को ‘ग’ क्षेत्र से ‘क’ क्षेत्र में लाया जाए।उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार राजभाषा नियमों में संशोधन करते हुए संघ शासित प्रदेश अंडमान-निकोबार को ‘ग’ क्षेत्र से ‘क’ क्षेत्र में लाया गया था,ठीक उसी प्रकार वर्तमान संघ शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को भी राजभाषा नियम १९७६ के अंतर्गत ‘क’ क्षेत्र में लाया जाना चाहिए।

#राजभाषा नियम १९७६ के नियम ३(३) में संशोधन की आवश्यकता-

संविधान के अनुच्छेद ३४३ के अनुसार हिंदी भारत संघ की राजभाषा है। इसमें में ऐसा कोई उपबंध नहीं है,जो इसके किसी क्षेत्र में प्रयोग को निषिद्ध करता हो,लेकिन राजभाषा नियम १९७६ के नियम ३(३) में यह कहा गया है कि केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से ‘ग’क्षेत्र में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हों) या व्यक्ति को पत्र आदि अंग्रेजी में होंगे।

इस प्रकार राजभाषा नियम ३(३)में ‘ग’ क्षेत्र स्थित संघ राज्य क्षेत्र या राज्य स्थित कार्यालयों व व्यक्तियों के साथ हिंदी के प्रयोग का कोई उपबंध ही नहीं है। संविधान के अनुच्छेद ३५१ में संघ को यह निदेश दिया गया है कि वह हिंदी की प्रसार वृद्धि करे और उसका विकास करें ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके,लेकिन राजभाषा नियम ३(३)का उपबंध संविधान के अनुच्छेद ३५१ की भावना के भी प्रतिकूल प्रतीत होता है,क्योंकि यह ‘ग’ क्षेत्र स्थित केन्द्रीय सरकार का कार्यालयों को छोड़कर अन्य के साथ हिंदी के प्रयोग को निषिद्ध करता है।

इसलिए यह सुझाव है कि इसमें आंशिक संशोधन करते हुए यह कहा जाए कि यदि ‘ग’ क्षेत्र में स्थित किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्र आदि यदि हिंदी में लिखा जाता है तो उसका अनुवाद राज्य की राजभाषा अथवा अंग्रेजी में भी दिया जाना आवश्यक होगा।

इस संशोधन से केन्द्रीय कार्यालयों(बैंकों,कंपनियों आदि सहित) द्वारा जनता के लिए जारी किए जाने वाले ऐसे अनेक मानक पत्र व सूचनाएँ आदि जो हजारों की संख्या में प्रणाली के माध्यम से सृजित होते हैं अथवा मुद्रण आदि से प्रयोग में लाए जाते हैं,उन्हें आसानी से हिंदी में जारी करते हुए उसके साथ राज्य की राजभाषा अथवा अंग्रेजी में जारी किया जा सकेगा। इससे ‘ग’ क्षेत्र में संविधान के अनुच्छेद ३५१ के अनुसार हिंदी की प्रसार वृद्धि तो होगी ही,साथ ही राज्य की राजभाषा के उपबंध के कारण राजभाषा संकल्प-१९६८ के अनुच्छेद २ का अनुपालन भी संभव हो सकेगा। हिंदी के साथ अंग्रेजी अथवा राज्य की राजभाषा की अनिवार्यता के उपबंध के चलते इससे हिंदीतर भाषियों को कोई असुविधा भी नहीं होगी।

आवश्यक कार्रवाई एवं उत्तर की अपेक्षा सहित।

सादर

उत्कर्ष अग्रवाल

(सचिव-वैश्विक हिंदी सम्मेलन)

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)

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