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ग्रीष्म ऋतु

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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तेज धूप की अद्भुत माया।
सूर्य आग गोला बरसाया॥
जीव जन्तु सब व्याकुल होते।
नीर बिना मानव हैं रोते॥

नदी ताल सब सूख रहे हैं।
देख धरा तप पवन बहे हैं॥
वन उपवन पतझड़ के मारे।
सूने-सूने जंगल सारे॥

आसमान पर बादल छाते।
नहीं मेघ जल मृदु बरसाते।।
संकट इतना गहरा छाया।
वसुंधरा जलती वनराया॥

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