सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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सूरत जो उनकी फूल सी दिल में उतर गई।
ख़ुश्बू-ए-मुश्क सारे बदन में ‘बिखर गई।
आते ही उसने घर में जो उलटा नक़ाबे रुख़,
दीवारो ‘दर की दोस्तों क़िस्मत ‘सँवर गई।
हौश-ओ-हवास फ़ाख़्ता पलभर में हो गए,
भूले से ‘उनकी सिम्त जो मेरी ‘नज़र गई।
दिल ‘बेक़रार है तो निगाहें भी हैं उदास,
जबसे नज़र मिला के ‘वो रश्के क़मर गई।
जिसको नसीब ‘हो गई उल्फ़त की ज़िन्दगी,
तक़दीर उस बशर की जहाँ में सँवर ‘गई।
मेरी भी आर्ज़ू थी उड़ूँ आसमान ‘पर,
क़ैची ‘मगर रसूम की सब पर कतर गई।
वो क्या ‘फ़राज़’ आए गुलिस्ताँ की सैर को।
रुख़सार उन’के चूम के तितली गुज़र गई॥