पूछते श्री भरत-मेरे भारत का क्या हुआ ??

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** भाग-२…….. हे श्री भरत! आपके भारत को खंडित और दंडित किया गया, परिवार विशेष में सत्ता आई… दुष्टों को महिमा मंडित किया गया। इस आर्यावर्त के आर्य को विदेशी का दर्जा दिया गया! भारत माता की छाती पर पापियों का मुजरा किया गया! ना श्री राम रहे,ना वो इतिहास रहा, ना … Read more

पूछते श्री भरत-मेरे भारत का क्या हुआ ??

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** भाग-१………. अभाव है चिंतन में,अलगाव है बंधन में! कहो कब आजाद हुआ भारत ??? गुलामी हैं जन-जन में!! आखिर सन ४७ के दौर में पुन: निर्माण की, क्रिया क्यों नहीं की गई ? `हम आजाद हो गए` ऐसी, झूठी संतावना क्यों दी गई ?? क्या कुकर्म था उसमें, जो १२ बजे … Read more

हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** हूँ हो गया अबोध मैं,भूल आमोद-प्रमोद में, प्रेम से पलता जैसे माता-पिता की गोद में ना रहा आभास कुछ! ना रहा एहसास कुछ! हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!! थी पकड़ रही कलम निरन्तर मेरी उंगलियाँ, लफ़्ज़ों को सुनकर गूँजती थी तालियाँ हूँ हो रहा गुमनाम मैं! … Read more

खुद को कुछ और सिखा डालूँ…

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने, अब सोचता हूँ… खुद को कुछ और सिखा डालूँl कुछ मेरे अंदर अब भी बाकी है- अहंकार,क्रोध,कामना,लोभ,दम्भ,द्वेष … इन्हें संपूर्ण मिटा डालूँl मैं नदी नहीं,जो हर रोज बहा करूंगा, मैं सूर्य नहीं,जो हर रोज निकला करूंगा मैं बादल हूँ वक्त पर बरसता हूँ, कभी बेवक्त … Read more

युद्ध भी जरुरी है

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** हे प्रिय! हृदय से कहना-क्या सत्य स्वभाव से सीधे हो ? या हे प्रिय! भीष्म की ही तरह तुम भी दु:ख के बाणों से बिधे हो ? क्यों निरंतर खोज में तुम्हारा दिन व्यतीत होता है ? या फिर कहो कि भीष्म की ही तरह राष्ट्र चिंता में तुम्हारा चित्त चिंतित … Read more

इक्कीसवीं सदी की नारी है वो

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** अब शाम ढले घर में नहीं बैठती है वो, अब दुपट्टे से अपने चेहरे को नहीं ढकती है वो। अब भय मुक्त है, अधिकार युक्त हैl क्योंकि,इक्कीसवीं सदी की नारी है वोll स्वतंत्र उसके विचार हैं, पंखों को पसार उड़ान भरती है वो। उसका मन चंचल है,इच्छा अमिट है, पानी के … Read more

फिर जग में चित क्यों हारा है

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** ये कोमल हृदय तुम्हारा है, ये प्रिय आँखें तुम्हारी हैं। इनमें नीर की धारा है, इनमें जीवन का सार सारा है। फिर जग में चित क्यों हारा है ? जग पे चित क्यों हारा है…? ये तन का माया जाल है, सर के काले बाल हैं। ये जो मुझे रुप-रंग मिला … Read more

प्रेम-अपेक्षा भी नहीं,उपेक्षा भी नहीं

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** प्रिय तेरी अनुपस्थिति में, मन व्याकुल स्थिति में खोया रंगीन हस्ती में, बैठा यादों की कश्ती में मंद-मंद पवन की उपस्थिति में, खुशियों की बस्ती में मन मोहित मेरा मेरी प्रकृति में, तन भी रीझ दिया तेरी सुंदर आकृति में। मैं बाट ढूंढता तुम तक आने को भरा प्रेम मस्ती में, … Read more

क्योंकि उनका मन ही नहीं…

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** एक बार फिर सजेगी आँसूओं की सेज मेरी, एक बार फिर रोऊँगा याद में उनकी… क्योंकि,उनका मन ही नहीं-उनका हूँ मैं, एक बार फिर टूट गए सारे सपने मेरे मन के। एक बार फिर बरसात होगी, बादल आँखों में झलक रहे हैं… घाव बढ़ते ही जा रहे हैं इस तन के। … Read more

विदा करते वक्त अम्मा भी रोई थी…

गोलू सिंह रोहतास(बिहार) ************************************************************** जब लांघी थी घर की चौखट, मेरे घर की दहलीज़ भी रोई थी चुपके-चुपके झांकता था जहां से, उस दीवाल की खिड़की भी रोई थी जब चला था घर से शहर की ओर, मुझे विदा करते वक्त मेरी अम्मा भी रोई थी। मेरी आँखें भी डबडबा गईं, पर किसी तरह संभाला … Read more