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खुद को कुछ और सिखा डालूँ…

गोलू सिंह
रोहतास(बिहार)
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बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने,
अब सोचता हूँ…
खुद को कुछ और सिखा डालूँl

कुछ मेरे अंदर अब भी बाकी है-
अहंकार,क्रोध,कामना,लोभ,दम्भ,द्वेष …
इन्हें संपूर्ण मिटा डालूँl

मैं नदी नहीं,जो हर रोज बहा करूंगा,
मैं सूर्य नहीं,जो हर रोज निकला करूंगा
मैं बादल हूँ वक्त पर बरसता हूँ,
कभी बेवक्त भी घिर आता हूँ आसमानों में
मेरी कुछ बूंद सुकून देते हैं,
तो कुछ तकलीफ भी दे जाते हैंl

अब भी विचलित होता हूँ,
बालपन की भाँति
सोचता हूँ…
मन को और केन्द्रित कर डालूँ,
बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने,
अब खुद को कुछ और सिखा डालूँl

अभी अबोध हूँ,कुमार हूँ,
अनुभवहीन हूँ,सुकुमार हूँ
निरर्थक हूँ,बे-आकार हूँ।
प्रकृति की इस नगरी में,
छोटा-सा किरदार हूँ
अंडे के चूजे की तरह,
संकीर्ण एक विचार हूँ
ईट का मकान हूँ,
एक-ना-एक दिन तो गिरना ही होगा!
सोचता हूँ,
क्यों ना खुद को आग में और भी पका डालूँ
बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने,
अब खुद को कुछ और सिखा डालूँl

आँख को भविष्य में,कान को सत्संग में,
मन को आकाश में,मस्तिष्क को चिंतन में
मुख को कीर्तन में,हृदय को समाज में,
हाथ को कर्म में,पैर को प्रदक्षिणा में
पेट को दक्षिणा में और खुद को लोगों के संग में लगा डालूँl
बहुत की पन्नों पर लिखावट मैंने,
अब सोचता हूँ खुद को कुछ और सिखा डालूँ…ll

परिचय-गोलू सिंह का जन्म १६ जनवरी १९९९ को मेदनीपुर में हुआ है। इनका उपनाम-गोलू एनजीथ्री है।lनिवास मेदनीपुर,जिला-रोहतास(बिहार) में है। यह हिंदी भाषा जानते हैं। बिहार निवासी श्री सिंह वर्तमान में कला विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी लेखन विधा-कविता ही है। लेखनी का मकसद समाज-देश में परिवर्तन लाना है। इनके पसंदीदा कवि-रामधारी सिंह `दिनकर` और प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद जी हैं।

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