joshi
नम्रता
मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश) **************************************************** अहम भावना शून्यता, है नम्रता प्रतीक… कठिन काम भी नम्रता, कर देती है ठीक। निराभिमान और नम्रता, देती पोषक तत्व… कायरता है ये नहीं, ये प्रतीक पुरूषत्व। परदे में यदि नम्रता, के पीछे है स्वार्थ… वहां नम्रता कपट को, ही करती चरितार्थ। संयम व्रत साधन नियम, सतत प्रयत्न कलाप… किन्तु … Read more
देश की खातिर…
शरद जोशी ‘शलभ’ धार (मध्यप्रदेश) **************************************************************************** देश की खा़तिर जिएँ हम,देश की ख़ातिर मरें, देश का गौरव बढे़ सब,काम हम ऐसे करें। आपसी मतभेद सारे,जो भी हैं हम भूल जाएँ, एक होकर हम सभी,इस राष्ट्र के ही गीत गाएँ। एकता हो देश में सब,काम हम ऐसे करें, देश की ख़ातिर…॥ जाति का अभिमान हो नहीं,रंग … Read more
कविता का जन्म
मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश) **************************************************** अबाध गति से अनजाने में, निशब्द भावनाओं का प्रवाह मानस पटल पर अंकित कुछ, अनबोले और अनछुए असंख्य विचार कल्पना का, मंथन कर उद्धेलित करते हैं अभिव्यक्ति को। जीर्ण-शीर्ण विचारों की सृष्टि में, संवेदना का उदगम ही प्रेरणा स्त्रोत बनता है। इन सभी भावों में क्रान्ति की, अग्नि प्रज्जवलित होने … Read more
प्रीत का उत्सव होली
मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश) **************************************************** होली उत्सव प्रीत का, मचा रंग का हाट हर दिन फागुन प्रीत के, नवल पढ़ाये पाठ। नयनों ही नयनों हुए, रंगों के संकेत रह-रह महके रातभर, केशर कस्तूरी के खेत। प्रीत महावर की तरह, इसके अलग हैं रंग बतियाती पायल हँसे, हँसे ऐड़ियाँ संग। रंगमयी आईने, बिसरे सभी गुमान जो … Read more
जी चाहता है
मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश) **************************************************** सहे जुल्म जिसने सदियों से अब तक, उनको उबारो,यह जी चाहता है। करते रहे आदिशक्ति की पूजा मगर मातृशक्ति कुंठित रही है। हुआ नहीं मान भूलकर भी, नारी आज भी व्याकुल विवश हो रही है। तड़पती तिरस्कृत है आज ममता, उसे अपनाने को जी चाहता है। दुर्गा लक्ष्मी अहिल्या सीता, … Read more
बसंती बयार
मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश) **************************************************** मेरे पिया गये परदेश, सखी री मेरा मन तरसे बसंती रंग बरसे, जिया में कैसे रंग हरखे। सरसों बढ़ती अरहर बढ़ती, गढ़ती नहीं कहानी राह ताकते हो गई उमर सयानी, टूट गये सब्र के फूल मन पुलके तन हरसे, बसंती रंग बरसे। बौर फूलते गेंदा हँसते, महुआ भी यदमात कौन … Read more
उमँग
श्रीमती राजेश्वरी जोशी ‘आर्द्रा’ अजमेर(राजस्थान) *************************************************** मुद्द्त से बंद हूँ कलियों में, खुशबू बन बिखर जाने दो। खोई आसमां की ऊँचाईयों में, मुझे बादल बन बरस जाने दो। क़ैद हूँ हिम शिखरों में अनंत से, निर्झर-सा झरना बह जाने दो। पिंजरे में बंद फड़फड़ाती रही, नभ में पंछी बन उड़ जाने दो। कसमसाती उम्मीदें उम्रभर, … Read more