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उमँग

श्रीमती राजेश्वरी जोशी ‘आर्द्रा’ 
अजमेर(राजस्थान)
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मुद्द्त से बंद हूँ कलियों में,
खुशबू बन बिखर जाने दो।

खोई आसमां की ऊँचाईयों में,
मुझे बादल बन बरस जाने दो।

क़ैद हूँ हिम शिखरों में अनंत से,
निर्झर-सा झरना बह जाने दो।

पिंजरे में बंद फड़फड़ाती रही,
नभ में पंछी बन उड़ जाने दो।

कसमसाती उम्मीदें उम्रभर,
आँसू आँखों से बह जाने दो।

देहरी तकती रही सूनी डगर,
वो इंतजार ख़तम हो जाने दो।

शामियाने ताने यादों के यारा,
अब तो विरह के गीत गाने दो।

पल-पल दम तोड़ती आत्माएं,
कफन तो मुहैया कराने दो।

हमसफर साथ चलने को कहा,
कदम दो कदम चलने तो दो।

रीता था मन प्यार की खातिर,
शमां की मानिंद जलने तो दो॥

परिचय-श्रीमती राजेश्वरी जोशी लेखन में मन के भावों को ही अधिक उकेरती हैं। आपका साहित्यिक नाम ‘आर्द्रा’ है। जन्मतिथि ५ मई १९५६ और जन्म स्थान अजमेर है। वर्तमान और स्थाई निवास अजमेर स्थित आदर्श नगर में है। स्नातक तक शिक्षित होकर  सेवानिवृत (कार्यालय सहायक)हैं। ग़ज़ल  के अलावा लगभग सभी विधाओं में लेखन जारी है। वेब मंच पर आपकी कविताओं को स्थान मिल रहा है। आपको राष्ट्रीय साहित्यिक मिशन से  श्रीमती महादेवी वर्मा संस्मरण सम्मान-२०१७, रामचरण गुप्त लघु  कथाकार सम्मान-२०१७ सहित  हरिशंकर परसाई सम्मान-२०१७,काव्य दिग्गज अलंकरण और साप्ताहिक प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ कवियित्री का  दूसरा-तीसरा सम्मान प्राप्त हुआ है। विशेष उपलब्धि सामाजिक मीडिया में लेखन के लिए ९ फरवरी २०१८ को देहली में सम्मानित किया जाना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को मातृभाषा घोषित करने के अभियान  को समर्थन एवं मन के उदगारों को व्यक्त करना है। 

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