आ जा सावन झूम के…

विजय कान्त द्विवेदीमुंबई(महाराष्ट्र)************************************* आ जा सावन झूम के,प्रकृति-परी केसुन्दर मुख कोमन-मानस में चूम के।आ जा सावन झूम के… हे सावन तुम,अधिक सुहावनरिमझिम बरसे पानी।मैंक-मांक-ध्वनि,दादुर बोलेकरें पावस की अगवानी। जब चढ़ा अषाढ़,घन घीरे भयंकरबरसे तुम,हरषे जीव।किन्तु पपीहा,अब तक प्यासासतत पुकारे पीव। बने धरा फिर,शस्य श्यामलाउगे खेतों में धान।जन-जीवन अब,और अधिक नहींहो ‘कोरोना’ से परेशान। हरियाली फैली … Read more

आपको ढूंढता किधर साहब

गोविन्द कान्त झा ‘गोविन्द राकेश’ दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** मैं उधर से गया ग़ुजर साहब, थी मनाही जहाँ जिधर साहब। आसमाँ में ही हैं उड़े फिरते, आपको ढूंढ़ता किधर साहबl शाम ढलते नहीं निकलता अब, आज भी तो लगे है डर साहबl हमको गुमनाम ही रखा जब तो, आता फिर कैसे मैं नज़र साहबl चौड़ी तो … Read more

जल छोड़ो बादल

प्रदीप कान्त इन्दौर (मध्यप्रदेश) ********************************************************************* ख़ुद को ज़रा निचोड़ो बादल, धरती पर जल छोड़ो बादल। सावन जैसा सावन तो हो, गर्व तपन का तोड़ो बादल। प्यासी नदिया पास बुलाती, ऐसे ना मुँह मोड़ो बादल। आज ज़रूरत ज़्यादा है कुछ, जल में जल को जोड़ो बादल। जम-जम बरसो,थम-थम बरसो, सूखा छोड़ न दौड़ो बादल॥