आ जा सावन झूम के…
विजय कान्त द्विवेदीमुंबई(महाराष्ट्र)************************************* आ जा सावन झूम के,प्रकृति-परी केसुन्दर मुख कोमन-मानस में चूम के।आ जा सावन झूम के… हे सावन तुम,अधिक सुहावनरिमझिम बरसे पानी।मैंक-मांक-ध्वनि,दादुर बोलेकरें पावस की अगवानी। जब चढ़ा अषाढ़,घन घीरे भयंकरबरसे तुम,हरषे जीव।किन्तु पपीहा,अब तक प्यासासतत पुकारे पीव। बने धरा फिर,शस्य श्यामलाउगे खेतों में धान।जन-जीवन अब,और अधिक नहींहो ‘कोरोना’ से परेशान। हरियाली फैली … Read more