प्रदीप कान्त
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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ख़ुद को ज़रा निचोड़ो बादल,
धरती पर जल छोड़ो बादल।
सावन जैसा सावन तो हो,
गर्व तपन का तोड़ो बादल।
प्यासी नदिया पास बुलाती,
ऐसे ना मुँह मोड़ो बादल।
आज ज़रूरत ज़्यादा है कुछ,
जल में जल को जोड़ो बादल।
जम-जम बरसो,थम-थम बरसो,
सूखा छोड़ न दौड़ो बादल॥