विधि का विधान

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** हमने चिता को जलते देखा है… चाहे राजा हो या फकीर, सबको एक दिन जाना है… कह गए संत कबीर। जितना हो शक्ति भला… उतना कर लो दान, जब अन्त समय आएगा… ना रहेगा घट में प्राण। पाव-पाव पग न गिनो… गिनों हजारों तीर, एकसाथ जब सब लगें… कह गए संत … Read more

दस्तक दे रहा नया वर्ष

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* देखो तो द्वार पर खड़ा, दस्तक दे रहा नया वर्ष आओ इस अतिथि के लिये, मन के पट खोल लें सहर्ष। सर पर वो रक्खे है,प्यार भरी गगरी, काँधों पर लादे,उपकारों की गठरी पीठ पर गरीबों के,जख्मों की मरहम, आया है गांव से,लुटेरों की नगरीl आया है दो हजार बीस, दुष्टों … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य अध्याय-१९.. विकृत रीतियों को दलने में, प्रथम कदम यह होगा मेरा आँख खुली,मैं जागा,वरना, होता अपराधी ही तेरा। यही सोचते पहुँच गये वे, सीधे अंशुमान के घर को खुला द्वार आया जो सन्मुख, देखा कभी न ऐसे नर को। कहो अतिथि आये हो कैसे, किससे मिलने की है चाहत … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य से अध्याय-१८………. हुआ द्रवित मन,आँसू छलके, भाव विह्वल पितु लगे सोचने बेटी को भी समझ न पाये, लगे स्वयं को सहज कोसने। शिक्षा देकर छीनूँ खुशियाँ, यह न कभी कर्तव्य पिता का यदि बेटी का हो न स्वयं पर, तो होगा अधिकार चिता का। सजातीय वर पाने को क्यों, … Read more

मैं बेटी हूँ

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** मैं बेटी हूँ,मैं बेटी हूँ, जग में एक अकेली हूँ दुनिया बहुत निराली है, यहाँ रहना बदहाली है। ना रिश्ता है न नाता है, लूट बलात्कार और हत्या करने वालों का जमाना है, हमें कौन बचाने वाला है। क्या अपराध किया है हमने ? जो अपने घर में डरती हूँ, मैं … Read more

आत्मजा

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* आत्मजा खंडकाव्य अध्याय-१७………….. देख पिता को इतना चिन्तित, पुन: प्रभाती ने मुँह खोला क्यों हो बैठे मौन पिताश्री, क्या मैंने कुछ अनुचित बोला। तूने नहीं किया कुछ अनुचित, मैं ही भटक गया हूँ पथ से उतर पड़ा था जीवन रण में, अनदेखे यथार्थ के रथ से। सपनों की दुनिया में खोया, … Read more

नटखट गोपाल

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** भोला-भाला तेरा लाल जैसे हो गिरधर गोपाल, आँगन में करता है कमाल… संभाल यशोदा अपना लाल। नटखट बहुत सयाना है माखन चोर बेगाना है, हाथ न आने वाला है… छलिया बहुत दीवाना है। कृष्ण कन्हैया संग ग्वाल-बाल मिलकर करे मटकी पर धमाल, अब बताओ बाबा नन्दलाल… कहाँ है तेरा गिरधर गोपाल। … Read more

एक है संसार

विजयलक्ष्मी विभा  इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. आओ मिल कर गायें हम-तुम, एक है संसार उठे हमारे मिले स्वरों की, नभ में भी गुंजार। सूर्य चमकता सबके घर में, पाते सभी प्रकाश मेघ बरसते जब धरती पर, बुझती सबकी प्यासl दिये विधाता ने ही हमको, सब समान अधिकार। यहाँ न कोई ऊंचा-नीचा, यहाँ … Read more

नन्हा-सा एक बालक

विजय कुमार मणिकपुर(बिहार) ****************************************************************** विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. नन्हा-सा एक बालक हूँ हाथ पकड़ कर चलता हूँ, पीछे कभी न मुड़ता हूँ आगे पथ पर चलता हूँ। बात-बात पर लड़ता हूँ फिर भी साथ में रहता हूँ, मिल-बांट कर खाता हूँ विद्यालय समय से जाता हूँ। औरों से मतभेद नहीं पिजरा हमें पसंद नहीं, … Read more

पत्थर दिल

विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** अब जा के, मेरे मन को आया,करार जब मैंने, अपने दिल को पत्थर पाया। है बहुत फिक्रमंद,और चाहने वाले,मेरे न जाने क्यूँ, मेरे दिल मे अभिमान आया,जो अपने दिल को पत्थर पाया। हो जाती है, मुहब्बत एक बेजुबाँ से फिर क्यों मैंने हँसी में, किसी का दिल दुखाया। अभिमान,गुरुर और बेतुकी … Read more