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पत्थर दिल

विजयसिंह चौहान
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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अब जा के,
मेरे मन को
आया,करार
जब मैंने,
अपने दिल को
पत्थर पाया।

है बहुत
फिक्रमंद,और
चाहने वाले,मेरे
न जाने क्यूँ,
मेरे दिल मे
अभिमान आया,जो
अपने दिल को
पत्थर पाया।

हो जाती है,
मुहब्बत एक
बेजुबाँ से
फिर क्यों मैंने
हँसी में,
किसी का
दिल दुखाया।

अभिमान,गुरुर
और बेतुकी बातें
भी कर लेगी,
किनारा एक दिन
ये प्रश्न,मैं कैसे
जान न पाया!

जब मैंने,
अपने दिल
को पत्थर पाया।

शायद,
मद रहा होगा
अक्लमंदी,
सुंदरता और
जवानी का।

वरना,
मेरे पत्थर
दिल में भी
खिलता कमल,
झूमता सावन
और तारों से
भरी रात लगती
सुहानी।

काश,मेरे
पत्थर दिल में
भी होता अंकुरण,
तुम्हारे
निश्छल प्रेम का॥

परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० और जन्मस्थान इन्दौर(मध्यप्रदेश) हैl वर्तमान में इन्दौर में ही बसे हुए हैंl इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की,तथा वकालात में कार्यक्षेत्र इन्दौर ही हैl श्री चौहान सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं,तो स्वतंत्र लेखन,सामाजिक जागरूकता,तथा संस्थाओं-वकालात के माध्यम से सेवा भी करते हैंl लेखन में आपकी विधा-काव्य,व्यंग्य,लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि,उच्च न्यायालय(इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी हैl

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