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तमसो मा ज्योतिर्गमय

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष…..

दीपोत्सव पावन बेला यह,
आओ विजयी दीप जलाएँ।
चलो मिटाएँ अन्धकार जग,
मुस्कान अधर खुशियाँ लाएँll

संकल्प चित्त आश्वस्त ध्येय,
जगमग-जगमग दीप जलाएँ।
नवप्रकाश हम नवप्रभात बन,
नव अरुणिम नव आश जगाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

अवसादन बन महाव्याधि जग,
घनघोर घटा बन जग छाये।
आओ मिलकर एक भाव मन,
सुखद शान्ति का दीप जलाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

खली जमाती भष्मासुर हर,
समरसता का भाव जलाएँ।
महातिमिर बन कोराना जग,
स्वच्छ स्वस्थ दूरी अपनाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

नाशी खल आतंक पाप जग,
महाकाल मुखग्रास बनाएँ।
चन्द्रकिरण मधुरिम मन शीतल,
सद्भावन नवदीप जलाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

जाति धर्म भाषा प्रदेश सब,
मिलें आज सब भेद भुलाएँ।
तन मन धन अर्पण जीवन कर,
चलो मानवता दीप जलाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

नैतिक बौद्धिक भौतिक विपदाएँ,
जुगनू बन रजनी मन भाएँ।
झूठे,हत्यारे,छल प्रपञ्च,
चन्द्रप्रभा निर्मलता लाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

न्याय धर्म धीरज साहस बल,
भ्रमित जगत में दीप जलाएँ।
संकल्पित मन शंखनाद कर,
असुर मिटा सुख ज्योति जलाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

देशद्रोह दानव लखि दुश्मन,
पुनः भारती आर्त पुकारे।
क्रन्दित भारत सुन आहत मन,
भारत माँ की लाज बचाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

दें आहट हम दीप जलाकर,
महाशक्ति हम शौर्य दिखाएँ।
कँपे रूह कोरोना दानव,
भारत माँ नव आश जगाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

आज पुनः संदेश विश्व को,
महाशक्ति आभास दिलाएँ।
सद्भावन नित एक राष्ट्र हम,
रणयोद्धा मानव यश गाएँ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय गाएँ।

है अमोल धन मानव पौरुष,
परमारथ नवकीर्ति बनाएँ।
शान्ति सुखद मुस्कान अधर,
आओ मंगल दीप जलाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

सत्यं शिव सुन्दर मानव जग,
आओ मिलकर साथ बचाएँ।
मिटे महातम कोरोना जग,
स्वस्थ शान्ति फिर जीवन पाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

आओ मंगल गान करें हम,
ज्योति पर्व हम दीप जलाएँ।
हिन्द राष्ट्र जयगान करें हम,
ध्वजा तिरंगा नभ लहराएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

तन मन धन रक्षण जन जीवन,
नैतिक मूल्यक मान बढ़ाएँ।
धीरज साहस नवशक्ति सबल,
अपनापन मन दीप जलाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

रे द्रोही मानवता दुश्मन,
तजो नाशमति राष्ट्र बचाएँ।
मत बिगाड़ समरस जनजीवन,
आ मानव बन ज्योति जलाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

भाग्यवान तू जन्म लिया नर,
सत्काम प्रीति-रीति निभाएँ।
तुले नाश क्यों मानव जीवन,
भारत माँ बल कीर्ति बढ़ाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

सर्वधर्म समभाव साथ हम,
प्रगति चतुर्दिक् मान बढ़ाएँ।
असतो मा सद्गमय पथगमन,
दीवाली जय दीप जलाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

नयी आश संत्रास मिटे जग,
साथी हम विश्वास जगाएँ।
कर्मकार उपचार चिकित्सक,
नर्स वृन्द आभार जताएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ।

दीन दुःखी जन अवसादित मन
साथ खड़े हम विश्वास जगाएँ।
क्रान्तिवीर को है नमन राष्ट्र,
मधुरिम स्नेहिल दीप जलाएँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ गाएँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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