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कर गुज़र जाना है

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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मनोवांछित सिद्धि किसको है,मिली कभी मनुहारों से ?
जीवन संग्राम गया जीता,कब मन के सुकुमारों से ?

आती हुई आपदा को जो, सीना ठोक दिखाते हैं,
बनकर ओझल निर्भीक हुए,क्रूर जगत की खाते हैं।

जिनके लिये खड़ी पग-पग पर,यातना बड़ी भारी हैं,
परिस्थितियों का खेल यह है,निशदिन रहता जारी है।

उनमें भी जो दीन भाव भर,संतप्त नहीं होते हैं,
दुर्बल जन की भांति बैठ कर,ज़रा भी नहीं रोते हैं।

विजयलक्ष्मी ने सदा उन्हें,जयमाला पहनाई है,
विधि भी उन वीरों पर ही तो,अंत में मुस्कुराई है।

वज्र की भाँति कठोर अपनी,छाती खूब बनाते हैं,
वे ही दो-दो हाथ समर में,अरि समक्ष कर पाते हैं।

सच है क्या मिलता मानव को,विपदा में घबराने से ?
दीन दुनिया सिद्ध होय कौन ? पीठ अपनी दिखाने से ?

चार दिन का जीवन फिर क्यों,व्यर्थ हमें भय खाना है ?
जो निश्चय कर डाला मन में,उसे कर गुज़र जाना है।

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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