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इतवार कुछ यूँ कहता है…

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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सुबह ने कहा-कब तक सोती रहोगी ?
जरा दरवाजा तो खोलो,
देखो! तुम्हारे घरोंदे में धूप निकल
आयी है।
घर का बेतरतीब से पड़ा सोफा बोला-
मुझे कब ठीक करोगी ?
अलमारी भी धीरे से चिल्लाई…
कब तक ऐसे बिखरी पड़ी रहूंगी!
मुझे भी आज सँवार दो।
तभी,बीच में टोकती हुई ड्रैसिंग की अस्त-व्यस्त पड़ी कंघी,
जूड़ा पिन लिपिस्टिक,क्रीम,काजल बोला-
हमें भी आज करीने से सजा दो,
हम तो रोज तुम्हें संवारते हैं।
दूर गैलरी में रखे सूखते हुए गमले के फूलों ने कहा-
हमें नहीं सहलाओगी!
कितने दिन हो गए,
पानी कब पिलाओगी ?
गार्डन की मखमली घास ने भी शिकायत की,-
कब ये व्यर्थ उग आई खरपतवार गन्दगी को साफ करोगी ?
बातें करती हो स्वच्छ्ता अभियान की,
हमें कब स्वच्छ करोगी..!
किचिन में रखे स्टोर के सामान ने कहा-
हमें भी देख लो,
नहीं तो खराब हो जाने पर बनिये की दुकान को कोसोगी।
छत,टांड,स्टोर रुम,गंदे कपड़े,पेपर की रद्दी,
गैलरी के काँच ने भी गुहार लगायी…।
सबने अपना-अपना समय माँगा,
सुनो! हमें कब तक ऐसे ही नजरअंदाज करोगी!
हमें क्या सिर्फ दीवाली पर ही याद करोगी।
तभी कूलर बोला-मुझे भीअब साफ कर डालो,
क्या मेरे बिना तुम जी लोगी ?
सबको देने का सोचा,उनका अपना-अपना हिस्सा,
तभी याद आया कि पतिदेव से कल किया था वादा कि-
आज पूरा दिन सिर्फ उनका होगा।
पर भूल गई दिल की पुकार कि,
आज वो जी भर जीना चाहती थी सिर्फ अपने लिए..
जिसमें थी उसकी बहुत-सी सहेलियों के साथ मटरगश्ती,
और शापिंग,फिर पार्लर में भी तो समय लिया था।
तभी टेबल पर पड़ी डायरी सकुचाई,बोली-
क्या कुछ नया आज नहीं लिखोगी!
महीनों से सेल्फ में पड़े अम्रता प्रीतम के,
उपन्यास ने भी आस भरी दृष्टि से देखा।
तभी फोन की घण्टी ने बुलाया,
माँ की आवाज ने जगाया-कब तक सोती रहेगी!
तूने कहा था-आज घंटों सिर्फ मेरी सुनेगी,
आज की छुट्टी मेरे नाम करेगी।
बेटे ने भी प्यार से गले में हाथ डाला,बोला-
माँं आज तो फुर्सत के कुछ लम्हें मेरे साथ ही बिताओगी!
कुछ अच्छा-सा बनाकर खिलाओगी।
तभी दरवाजे की घंटी ने चौकाया…!
सामने खड़े अतिथि महोदय बोले-
सोचा आज तो इतवार है,घर में ही मिल जाओगी।
वो सिर्फ मुस्कुराई…,
और एक इतवार को सुनने व समेटने लग गई॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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