ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
**************************************
हरदम जमाना धन-ए-दौलत का रहा गुलाम है,
ठुकराए ताजो तख्त मानवता लिये वो राम है।
जी जानवर भी पेट खातिर ले मगर तो क्या हुआ,
जिसने जिया औरों लिये होता उसी का मान है।
मिलती नहीं सौगात कुछ भी जिंदगी में सोच रख,
पाने लिये करने यहाँ पड़ते महासंग्राम है।
सोचा न समझा और इंसा मनमर्जी करता रहा,
पर हर गलत ही काम का होता बुरा अंजाम है।
फितरत अलग होती हमेशा मासूमों की खामखां,
सब जानता है पर बने रहता वही अनजान है।
किरदार अपना असल में होता सभी का अलग है,
होते शिकायत आदमी को गर वही नाकाम है।
कुछ लोग कंधे और के जीवन जिये हैं बैठ के,
जो काम करते हैं नहीं खाये बने नादान हैं॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।