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‘महावीर’ के सिद्धांत श्रेष्ठतम उपाय है कोरोना को हराने में

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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महावीर जयंती-६ अप्रैल विशेष………….
आज सारा विश्व ‘कोरोना’ की चपेट में है,सभी देश अपने-अपने स्तर पर प्रयासों से इसे हराने में लगे हुए हैं। इस विश्वव्यापी समस्या से निपटने में विश्व के सभी देशों के बीच में भारत एक महाशक्ति बनकर उभरने की तैयारी में है। भारत विश्व की एक तिहाई जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भी कोरोना पर विजय प्राप्त करने की तैयारी में है। जहाँ विश्व कोरोना के सामने घुटने टेक रहा है,वहाँ यह कैसे संभव हुआ। आज सारा विश्व अचंभित है,और भारत की तरफ ही नजरें लगाए देख रहा है। यदि हम देखें तो इसका मूल कारण भारतीय संस्कृति और सनातन परम्परा में होने वाले दिव्य महापुरुषों द्वारा सुझाए गए वे सिद्दांत हैं,जो हर समय जीव और जगत के कल्याण के लिए बनाए गए थे।
आज से २६१९ वर्ष पूर्व भारत में एक ऐसे महामानव का जन्म हुआ,जो स्वयं के कल्याण से ज्यादा जगत के कल्याण का भाव मन में ले कर जन्मे। जो जन्मे तो राज महल में,पर अपने कर्मों से लड़ने के लिए तीर्थंकर ऋषभदेव की परम्परा में वैराग्य के पथिक बने और बगैर दैविक-भौतिक सहयोग के कर्म जंजालों को तोड़ते हुए समाज में नई दिशा का सूत्रपात कर गए। वह राजकुमार थे ‘वर्धमान’,जो दुनिया में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर ‘भगवान महावीर’ के नाम से जाने जाते हैं। महावीर की उपाधि वर्धमान कुमार को यूँ ही नहीं दी गई है। वे कर्म करने में विश्वास रखते थे,स्वयं ने अपने तप के बल से कर्मों पर विजय प्राप्त की थी और दुनिया को भी कर्म करने का संदेश दे गए। इसीलिए उनको श्रमण भी कहा गया है।
महावीर ने मार्ग दिखाया,वे किसी के हमराही नहीं बने और न ही उन्होंने किसी को अपना हमराही बनाया। महावीर ने कहा-“धार्यते इति धर्मः” अर्थात जो धारण किया जाए,वह धर्म है। शरीर जिसे धारण करे वह वस्त्र है, उसी तरह आत्मा जिसे धारण करे,वह धर्म है,और धर्म को जो धारण करता है वह कभी किसी का अहित नहीं करता है,वह अहिंसक होता है। याने जैसा मैं हूँ,वैसे ही अन्य जीव हैं। जैसा मेरा शरीर है,वैसा ही दूसरों का शरीर है। जैसी मेरी आत्मा है,वैसी ही दूसरों की आत्मा है। जैसे कोई मुझे मारता है तो दर्द होता है,वैसे ही मैं दूसरे को मारुंगा तो उसे भी दर्द होगा। जैसे कोई मुझे गलत कहता है,तो मुझे बुरा लगता है, वैसे ही मै दूसरे को कहूंगा तो उसे भी बुरा लगेगा। अहिंसा इन्हीं वेदना और संवेदना का एकाकार रूप है। दूसरों के दु:ख की अनुभूति जिसे है,वही सच्चा धर्मी है।
कोरोना की रोकथाम के लिए जितने उपाय विश्व स्वास्थ संगठन और हमारे प्रधानमंत्री की पहल पर किए जा रहे हैं, वे सब महावीर के अहिंसा सिद्धांत का ही विस्तार है। महावीर ने २६०० वर्ष पहले कहा था सामान्य स्थिति में भी मनुष्य को स्वच्छता का पालन करना चाहिए,जिनमें शरीर,वस्त्र,आहार,भूमि और मन की शुद्धता प्रमुख है। महावीर के सिद्धांतों पर केन्द्रित २१ दिवसीय ‘तालाबंदी’ और सामाजिक(शारीरिक) दूरी की पहल सराहनीय है। इसके कारण जहां शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आम व्यक्ति प्रयासरत है ,वहीं आहार और वस्त्र शुद्धि भी स्वतः ही हो रही है। आसपास का परिवेश और पर्यावरण भी इन दिनों में सुधरने के कगार पर है,जब सारी स्थितियां मनुष्य के लिए सकारात्मक होने लगेगी तो मन का शुद्ध होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है,यह उल्लेख हमारे यहां के प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है। आज व्यक्ति चाहे आर्थिक और पारिवारिक और सार्वजनिक गतिविधियों से दूर है,लेकिन उसे अपने-आपको समझने का,अपने-आपको सुधारने का,अपने आपको जानने का एक अवसर मिला है। महावीर भी यही कहते थे कि,अपने-आपको जानो। जो अपने-आपको जान लेगा वह संसार को जान लेगा। आप यदि स्वयं सुधरे हैं,स्वयं साफ- सुथरे हैं,तो दूसरों को भी साफ-सुथरा रहने के लिए प्रेरित करेंगे। आप स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हैं,तो दूसरों को भी स्वास्थ्य के लिए सचेत करेंगे।
महावीर का हर सिद्धांत ‘जियो और जीनो दो’ पर आधारित है। आज हम परिग्रह के चक्रव्यूह में उलझे हैं,लेकिन इस २१ दिन की तालाबंदी से अपरिग्रह को समझने और अपनाने का अवसर मिला है। जो मेरा है वो सबका है। मुझे जितना चाहिए वो मिल गया, दूसरों के अधिकारों पर मैं क्यों कब्जा करुं, यह जिसने समझ लिया उसके लिए सारा संसार अपना घर परिवार होगा,और हमारी ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अवधारणा साकार हो जाएगी। महावीर ने कहा कि उतना रखो जितनी आवश्यकता है,यानी ‘पेट भरो-पेटी नहीं।’ यदि आज हम महावीर के इन सिद्धांतों को मान लें और इसका अनुसरण करें तो विश्वभर में सामाजिक खुशहाली होगी,और सारे विश्व में सच्चा समाजवाद स्थापित हो सकेगा।
महावीर ने संसार को ‘अनेकान्तवाद’ का आदर्श पाठ सिखाया। यानी मैं जो कह रहा हूँ,वह भी सत्य है और जो दूसरे कह रहे हैं,वह भी सत्य हो सकता है। हम हर तरफ अपनी आँख और कान खुले रखें। देश-विदेश हो, समाज हो,जाति हो या परिवार आपसी संघर्ष का मुख्य कारण है वैचारिक वैमनस्यता,पर अनेकान्तवाद ही एकमात्र औषधि है,जो इस वैचारिक वैमनस्यता की बीमारी को जड़ से समाप्त कर सकती है।
कोरोना के संक्रमण को मिटाना है,तो हमें अपने-आपमें केन्द्रित होना पड़ेगा,सामाजिक दूरी रखनी होगी। साथ ही शरीर की शुद्धि तथा आहार की शुद्दि पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। विश्व में जो महामारी फैलाकर तीसरे विश्व युद्ध का अप्रत्यक्ष आगाज़ किया है। इससे बचने के लिए महावीर के सिद्धांत ही श्रेष्ठतम उपाय हैं। समस्याएं महावीर के युग में भी थी,वर्तमान में भी है और आने वाले समय में भी होगी,पर महावीर के दिखाए अहिंसा,अपरिग्रह और अनेकांत का मार्ग यदि हम अपनाएं तो विश्व की हर समस्या का हल हमें अपने आसपास ही मिल जाएगा। हमें कहीं और ढूँढने की जरुरत नहीं है।

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