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शत्रु भी लोहा मानते थे शौर्य-समर्पण का

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….

९ मई १५४० ईसवीं को राजस्थान में उदय सिंह व जयवंताबाई के राजमहल में जन्मे महाराणा प्रताप सिंह भारत एवं भारतीयों की शान और मान हैं’जो परमवीर अद्वितीय योद्धा थे। उनकी शौर्य गाथा,उनका नाम सिमरन करते ही शरीर में वीर रस उमड़ पड़ता है। वे छापामार अर्थात गुरिल्ला युद्ध के जन्मदाता थे। उनकी रग-रग में शौर्य और वीरता वास करते थे। वह धर्म-कर्म और जप-तप गुणों से इतने परिपक्व और परिपूर्ण थे, कि शत्रु भी लोहा मानते थे।
यही नहीं,बल्कि उनका राष्ट्र के प्रति समर्पण,संघर्ष,निष्ठा सदैव वंदनीय रहेगी। उनकी राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रप्रेम की वीरता भरी कथाएं प्रत्येक भारतीय के रोंगटे खड़े कर देती है। उन्हें देश की सुरक्षा और मातृभूमि की सेवा हेतु उदाहरण स्वरूप माना जाता है और भविष्य में भी माना जाएगा।
उनकी शौर्य गाथाओं का शब्दों से वर्णन करना अत्यंत कठिन है,क्योंकि वह एक दृढ़ संकल्पित निडर प्रवृत्ति के स्वामी और दूसरी तरफ अनुशासनप्रिय,निष्ठावान,कुशल नेतृत्व एवं उत्तम दृष्टिकोण की मूर्ति थे।
इसके अलावा उनकी कूटनीति और शारीरिक क्षमता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि वह भारी-भरकम छाती कवच,तलवार और भाले लेकर चलते थे। जिससे शत्रुओं के पसीने छूट जाते थे। उनके चहेते सर्वश्रेष्ठ घोड़े ‘चेतक’ को कौन नहीं जानता ? जिसने वीरगति प्राप्त करने से पहले अत्यंत घायल अवस्था में भी अपने स्वामी को लम्बी छलांग लगा कर नाला पार करवाया था,जिसे मुगल घुड़सवार पार ही नहीं कर सके थे।
उन्होंने अकबर की दासता स्वीकार नहीं की और अपने जुझारू सैनिकों (जिनमें मुस्लिम सैनिकों की भी अपार उल्लेखनीय भूमिका थी) का नेतृत्व करते हुए हल्दी घाटी का वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा। इतिहास साक्षी है कि अकबर की विशाल सेना भी उन्हें पराजय नहीं कर पाई।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह को अत्यंत हानि हुई और वह स्वाभिमान के बल पर जंगलों में चले गए। जहां वह अपनी सेना को संगठित करते रहे थे और घास की रोटियों से प्रेमपूर्वक परिवार सहित पेट की आग बुझाते रहे। फलस्वरूप राजस्थानियों के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत उनका ऋणी हो गया।
जीवनभर उन्हें अकबर की सुसज्जित विशाल सेना पराजय नहीं कर सकी और अंततः धनुष की डोर से हुए आंत के घाव के उपचार में ५७ वर्ष की आयु में वीरगति प्राप्त कर स्वर्ग सिधार गए।
विडम्बना यह है कि हल्दी घाटी की मिट्टी कुरूक्षेत्र की भूमि जैसी पवित्र है,परंतु भारत में भाजपा के सत्तासीन होते हुए भी महाराणा प्रताप सिंह की अद्वितीय परमवीरता,साहस, अटल राष्ट्रभक्ति,मातृभूमि प्रेम और प्रेरणा एवं कृतज्ञता का भविष्य उज्जवल नहीं हुआ। इसे किसी भी दृष्टिकोण से सौभाग्यशाली नहीं माना जा सकता। हालांकि,राष्ट्र के वर्तमान महामहिम और प्रधानमंत्री ने ‘जाकर देखो हल्दीघाटी हुई रक्त से लाल’ के गीत अनेक बार गाए हैं।

परिचय–इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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