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पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती…!

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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पिछले पन्द्रह दिन से मिसेज़ शर्मा को मलेरिया हो जाने की वज़ह से वो स्कूल नहीं आ रही थीं,इसलिए स्कूल से छुट्टी होते ही हम सब सहयोगी मित्र-शिक्षिकाएं उनसे मिलने उनके घर गईं l घर पहुँच कर जब हमने बेल बजाई,तो उनकी बड़ी बेटी ने दरवाज़ा खोला और हमें देखकर उसने ना नमस्तेकिया ना हलो,ना हाय..! बिना किसी प्रतिक्रिया के वो अंदर चली गई l उसका ये रवैय्या देख हम सब एक- दूसरे का मुँह ताकने लगे..! और तत्क्षण हमें तुलसी दास जी की पंक्तियाँ याद आ गई…आवत ही हरसै नहीं,नैनन नहीं सनेह l तुलसी तहाँ ना जाइये,चाहे कंचन बरसे मेहll लेकिन करते भी क्या! इतनी दूर उनके घर गए थे, इसलिए मिसेज शर्मा से दो मिनट के लिए तो मिलना ही था,ये सोचते हुए हम सब बिन बुलाए मेहमान..उनके घर के अंदर चले गएl मिसेज़ अग्रवाल ने तो फुसफुसा कर मुझसे बोल ही दिया…यही मिसेज शर्मा तो स्कूल में परवरिश और संस्कारों को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें किया करती हैं l तो क्या यही सिखाया है उन्होंने अपनी बेटी नव्या को...ये कोई छोटी बच्ची तो है नहीं, इंजीनियरिंग कर रही है..! ये सुनकर सभी शिक्षिकाओं ने बड़ी ही मायूसी से मुँह बनाते हुए उनकी बातों का समर्थन कियाl
थोड़ी देर बाद मिसेज शर्मा की छोटी बेटी काव्या स्कूल से आई,और हम सब टीचर्स को देखते ही..ख़ुशी से चिल्लाते हुए बोली-नमस्ते आंटी,अरे वाह..! आज आप सब एकसाथ...! आज तो आप सबको मेरे बनाए हुए पालक के पकौड़े खाने ही पड़ेंगे..!" तो मैंने कहा-बेटा,हम सब तो मम्मी का हाल-चाल पूछने आए थे..!तो अच्छी बात है न आंटी,चलिए इसी बहाने आप लोग एकसाथ आए तो... कहते हुए उसने अपना स्कूल बैग सामने रखा और अपना स्कूल ड्रेस चेंज किए बिना ही हम सबके लिए दौड़कर पानी ले आईl मैंने कहा-बेटा,मम्मी से मिलकर हम चले जाएँगे,तुम अभी स्कूल से आई हो…ड्रेस वगैरह तो बदलो…!कुछ नहीं होता आंटी,मैं ड्रेस बाद में बदल लूँगी, कितना समय लगेगा…पर आप लोग बिना कुछ खाए चले जाएँगे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा..काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा...!
और फ़िर हम सभी के पानी पीते ही मैं पानी की सारी ग्लास उठाकर अंदर रसोईघर में ले गई..l मैं मिसेज शर्मा के यहाँ पहले भी कई बार आ चुकी थी,इसलिए रसोई कहाँ पर है,जानती थीl अंदर जाते हुए मैंने देखा..नव्या अभी भी मोबाईल में किसी से बात करने में व्यस्त थीl ये देखकर मेरा मन खिन्न हो गया,और तुरंत ही ये ख़याल आया कि बुज़ुर्गों ने सच ही तो कहा है,-हमारे ही हाथों में पांच उँगलियाँ है,पर कोई भी एक समान कहाँ होती हैं...! आखिर क्यों ये बच्चे ऐसा काम करके अपने माँ-बाप का नाम बदनाम करते हैंl अब यहीं देख लो.. मिसेज़ शर्मा ने संस्कार क्या सिर्फ़ छोटी बेटी को ही दिया होगा...! शायद नहीं..!,लेकिन छोटी बेटी ने संस्कार का सही समय पर मान तो रखाl हो सकता है कि कुछ लोग इस बात पर सवाल भी उठा सकते हैं किनव्या की फ़ोन में कोई ज़रूरी चर्चा भी तो हो सकती है…!`

हाँ…हो सकती है..! लेकिन एक पल के लिए भी सोचिए,अग़र आप किसी के घर गए हों और आपको कोई अनदेखा कर रहा हो..तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी..! यहाँ पर तो यही कहा जा सकता है, कि नव्या कुछ पल के लिए अपने वार्तालाप करने वाले से क्षमा माँगते हुए हमें अपनी सच्चाई भी तो बता सकती थी,पर ऐसा नहीं हुआ… । इस तरह की घटना आपको प्रायः देखने को मिल ही जाएगीl आश्चर्य होता है कि ऐसे बच्चे आख़िर समझते क्यों नहीं हैं कि,उनके द्वारा किया गया ग़लत व्यवहार उनके साथ-साथ उनके अभिभावकों के मान-सम्मान पर प्रश्न भी तो खड़ा करता है…!

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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