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बोहनी

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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वसुदेव सुबह-सुबह फेरी लगाने निकल रहा था…। वसुदेव गली-गली फेरी लगाकर गुब्बारा,चकरी, झुनझुना खिलौने आदि बेचा करता था…। ‘तालाबंदी’ के चलते वसुदेव की हालत बहुत खराब थी,बिक्री न के बराबर हो रही थी…! मजदूरी भी बन्द थी,३ छोटे-छोटे बच्चे…सबसे छोटी वाली की उम्र लगभग साल भर की थी…! वो खिलौनों को देख कर खास कर गुब्बारों को देख बेहद खुश होती थी…,किन्तु वो सब खेलने के लिए वसु अपनी बेटी को नहीं दे पाता था…। कारण ??? अगर घर में ही खिलौने-गुब्बारे खराब हो गए तो बेचे क्या ? बड़े बच्चों को थोड़ी बहुत समझ थी,किन्तु छोटी बेटी को रोज मार कर ही अपनी झल्लाहट मिटाया करता था वसु…। नासमझ बच्ची रोते हुए जमीन में लोटने लगती…।
आज भी वही हुआ,जैसे ही वसु ने अपनी फेरी उठाई…बस एक पुतली के लिए छोटी बच्ची मचल गई…! ‘मुझे ये वाला चाहिए…पप्पा दे दो न …।’ वो लगभग लिपट ही गई थी वसु के पैर में…और फेरी उठाते-उठाते वसु को क्रोध आया तो झल्ला कर उसने अपने पैर को जोर का झटका दिया…और चिल्लाया…’कमला…इसे पकड़…।’ पैर से छिटक कर छोटी बच्ची चिलक कर रोने लगी…उसे हल्की-सी चोट भी आई…। मंझली बेटी को ये सब बड़ा ही नागवार गुजरता था रोज…पापा को यूँ बहन को रुलाना…।
वो दौड़ कर अपने पापा के सामने जाकर खड़ी हो गई…’रुको पप्पा।’
‘क्या हुआ ?? बोहनी के टाइम क्यों खोटी कर रही है ???’ वसु ने डांटते हुए अपनी लड़की को पूछा ?
‘बोहनी घर से कर के जाइये पप्पा! ये पुतली कितने की है बोलो…??’
‘१० रुपए की!’ अनायास ही वसु के मुँह से निकला। मंझली बेटी ने तुरंत एक मुड़ा-तुड़ा १० का नोट वसु को दिया…! वसु अवाक-सा कभी बेटी को,कभी १० के नोट को देख रहा था…और पत्नी कमला वसु की बेबसी को देख रही थी…!
कल कमला की मालकिन ने उसकी मंझली बेटी को १० रुपए ईनाम में दिए थे…खुश होकर …और आज उसकी एक बेटी दूसरी बेटी की खुशी खरीद रही थी…अपने ही पप्पा से…पैसे देकर…। वाह रे मजबूरी…वसु अपनी बोहनी करवा कर अगली गली में फेरी लेकर चला गया।

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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