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पर्यावरण पर तालाबन्दी का सकारात्मक प्रभाव

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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विश्व पर्यावरण दिवस ५ जून विशेष…….

पर्यावरण की चिंता करने वाले और उसे लेकर अपने स्तर पर लगातार प्रयास करने वाले लोगों और संस्थाओं के लिए विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) तालाबन्दी के कारण स्वच्छ हुई प्रकृति को निहारते हुए आंतरिक खुशी प्रदान करने वाला है। स्वच्छ नदी,स्वच्छ हवा और वातावरण में आया यह बदलाव भाग-दौड़ भरे जीवन में हरियाली की वापसी है,जो मन को बड़ी राहत दे रही है। हालांकि,इस हरियाली और राहत की एक बड़ी कीमत भी मनुष्य सभ्यता ने चुकाई है।

कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया में मौत का तांडव मचा हुआ है। यह एक बड़ा सच है कि मौत के तांडव के कारण यह पर्यावरण बदला है,अब इसकी कीमत से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अब हमें पर्यावरण को महामारी के बहाने नहीं, बल्कि अपने स्तर पर,आदतों में सुधार लाकर सरंक्षित करना जरुरी हो गया है। अब पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषण पर हमेशा के लिए ताला लगाना बेहद जरुरी हो गया है। तालाबन्दी ने अर्थव्यवस्था व सामाजिक ढांचे को तहस-नहस भले ही कर दिया हो,लेकिन सकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि हवा,पानी का यह बदलाव किसी चमत्कार और बड़े लाभ से कम नहीं है। वैश्विक आँकड़े बता रहे हैं कि पिछले सत्तर वर्षों में किए गए तमाम प्रयासों और जलवायु परिवर्तन के असंख्य वैश्विक समझौतों के बावजूद पर्यावरणीय स्थिति में वो सुधार नहीं हो पाया था,जो पिछले सत्तर दिनों में वैश्विक तालाबन्दी के चलते हुआ है। पर्यावरण और जीवन का अटूट संबंध है,फिर भी हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के संरक्षण,संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता है। यह बात चिंताजनक ही नहीं,शर्मनाक भी है।

वैश्विक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जिन देशों में वायु प्रदूषण अधिक था,वहाँ कोविड-१९ के मरीजों की स्वस्थता कम हो पाई हैl अमेरिका में ९० प्रतिशत मौत उन शहरों में हुई,जहां वायु प्रदूषण अधिक है। इटली में भी जिन जगहों पर वायु प्रदूषण अधिक है,वहां कोरोना के चलते होने वाली मौतों में इजाफा हुआ है। इटली के उत्तरी भाग में वायु प्रदूषण अन्य इलाकों की अपेक्षा काफी ज्यादा है और यहां कोरोना से मरने वालो की संख्या भी करीब तीन गुना ज्यादा है।

वायु प्रदूषण के कारण ही भारत में प्रतिवर्ष १० लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। कोरोना संक्रमितों की संख्या भी देश के महानगरों में अन्य जगहों से अधिक है। मुंबई,दिल्ली,कोलकाता,चेन्नई में यह आँकड़ा उछाल पर ही रहा है। मुंबई जैसे प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण लंबे समय से काफी ज्यादा है। ऐसे में साँस संबंधी बीमारियों वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा है। कोरोना के कारण सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या भी महाराष्ट्र में ही है। गौर करने वाली बात यह भी है कि जहां कोरोना विषाणु फेफड़ों पर आक्रमण करता है,वहीं वायु प्रदूषण फेफड़ों को कमजोर करता है,मतलब जहां वायु प्रदूषण ज्यादा होगा,कोरोना का खतरा भी वहां खतरनाक रहेगा।

देशभर में तालाबन्दी के कारण जो पर्यावरण और हवा साफ हुई है,देखने वाली बात होगी कितने दिनों तक यह साफ रहती है। नासा की हाल ही की एक रिपोर्ट बताती है कि,उत्तर भारत में वायु प्रदूषण पिछले २० साल में सबसे कम हो गया है। वाहनों का धुआं हो या तमाम औद्योगिक इकाइयों के बंद होने से उनसे होने वाला उत्सर्जन शून्य के बराबर हो गया है। निर्माण और खनन बंद होने से पर्यावरण को राहत मिली,नगरों से निकलने वाला कचरा कम हुआ,नदियों में पहुंचने वाले प्रदूषक तत्वों की मात्रा में भारी कमी दर्ज की गई।

वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहतर स्थिति में पहुंचता हुआ नजर आया। यहां तक की नदियों में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में अपेक्षाकृत आश्चर्यजनक वृद्धि होने से यह पानी पीने योग्य हुआ। क्या गंगा,क्या यमुना आदि अन्य महत्वपूर्ण नदियों व झीलों का जल साफ व पीने योग्य हो गया है। पंजाब के जालंधर से २०० किलोमीटर दूर हिमालय के धौलाधार पहाड़ व उन पर पड़ी बर्फ साफ दिखाई देनी लग गई। दिल्ली की हवा साफ हुई तो आसमान भी चटख नीला दिखने लगा। चारों ओर परिंदों की चहचहाहट सुनाई देने लग गई।

यह सच है कि,कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था को जो झटके लगे हैं,उससे बहुत-सी इंसानी जिंदगियां तो बर्बाद होने की कगार पर है। साथ ही अरबों खरबों डॉलर के आर्थिक उत्पाद भी बर्बाद हुए हैं,पर इसकी क्षतिपूर्ति यदि कहीं से दिखाई देती है तो वो है पर्यावरण,क्योंकि गर्म हो रहे वायुमंडल से दुनिया को एक गहरा आघात लगता है। उससे निपटने के लिए नीति निर्माता,वित्तीय संस्थाएं व निवेशक यह सोचने पर मजबूर हुए हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आर्थिक पैकेज तैयार रखने होंगे। वैश्विक तालाबंदी ने वायुमंडल के लिए वह काम कर दिया,जो अब तक तमाम बड़ी-बड़ी हरित परियोजनाएं नहीं कर सकी।

पर्यावरण पर तालाबंदी के पड़े इस सकारात्मक प्रभाव ने दुनिया को इस बात के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्यों न पूरे विश्व में हर साल या प्रत्येक माह में कुछ दिन एकसाथ आवश्यक सेवाओं और अनवरत चलने वाली इकाइयों को छोड़कर अन्य सभी गतिविधियों को बंद कर सम्पूर्ण ताला लगाया जाए। इसके लिए एक वैश्विक समझौते पर सहमति बनानी होगी। सहमति इस बात पर भी बननी चाहिए कि लोग निजी वाहनों का सयुंक्त उपयोग करें। सार्वजनिक साधनों की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए। निजी और सरकारी निवेश को हरित परियोजना की ओर बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में कोरोना से भी खतरनाक है प्रदूषित वातावरणl कोरोना देर-सवेर अच्छे-बुरे अनुभव दे कर चला जाएगा,लेकिन उसके बाद हम पर निर्भर करता है कि हम इससे क्या सीख लेते हैं।

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