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पवित्र हदय ही उत्तम तीर्थ

रोहित मिश्र,
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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भारतीय समाज में ये मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। यानि आपके मन में अगर कुछ गलत विचार है तो गंगा स्नान करने से वे गलत विचार आपके मन से हट जाएंगे। इसका अर्थ ये नहीं है कि आप दिनभर गलत कार्यो में संलग्न रहो और फिर गंगा स्नान करके अपने गलत कार्यों के पाप से मुक्ति पाओ।
‘गंगा स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं।’ इसका तात्पर्य यह है कि आपको रोज स्नान करना चाहिए,क्योंकि पुराने समय में आजकल की तरह न तो आम घरों में स्नानघर होते थे और न ही घर-घर में नल द्वारा पानी की व्यवस्था रहती थी। यहाँ तक कि कुएं भी बहुत ही कम थे। तब आबादी नदियों के किनारे ही बसती थी।
अर्थात कहने का आशय यह है कि रोज स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इसी कारण पुराने समय में यह कहावत थी कि गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए,क्योंकि आबादी पानी की उपलब्धता के कारण नदियों के किनारे ही बसती थी। यहाँ तक कि हड़प्पा और मोहन जोदड़ो की सभ्यता के साक्ष्यों से भी यह साबित हो चुका है।
अब विषय पर आते हैं…तो कहते हैं कि-‘मन चंगा तो कटौती में गंगा’ अर्थात अगर आपका मन पवित्र है तो आपको गंगा स्नान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यानि आपका मन किसी भी विषय,वस्तु या व्यक्ति के लिए बिल्कुल साफ और स्वच्छ है तो आपको किसी धार्मिक स्थल पर जाने की आवश्यकता नही है। हर धर्म में धार्मिक स्थल पर जाने की बात इसलिए कही जाती है,क्योंकि व्यक्ति का मन सांसारिक मोह-माया के कारण अशांत हो जाता है और धार्मिक स्थल पर वो अपना मन ईश्वर पर केन्द्रित करके मन को शांत करने का प्रयास करता है।
आशय यह है कि व्यक्ति का मन मोह,माया अर्थात लालच,ईर्ष्या,वेदना आदि के कारण दूषित रहता है,जिस कारण मन मस्तिष्क में अनेक दूषित विषयों और विचारों का आवागमन बना रहता हैऔर मन अशांत रहता है।
आशय यही है कि पवित्र मन से किया गया कार्य ही उत्तम कार्य है। यानि साफ सुथरे मन से,नि:स्वार्थ भाव से गरीबों की सेवा ही असल मायने में ईश्वर की सेवा है। यानि सेवा किसी धार्मिक स्थल पर जाकर पुण्य कमाने से किसी भी स्तर से कम नहीं है।

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