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मानवता का मानःएक चिन्तनीय विषय

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मानवता का मान एक चिन्तनीय विषय हैl आज समाज देश या वैश्विक पटल लोभ, ईर्ष्या,द्वेष,झूठ,ठगी,लूट,भ्रष्टाचार,विस्तारवाद आदि राक्षसी दुष्कर्मों के दल-दल में फँसता जा रहा है। अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए आज मनुष्य किसी भी निकृष्ट कर्म को करने के लिए तैयार है। चाहे परिवार में आजीवन अपनी संतान के लिए अपना सब-कुछ समर्पित करनेवाले माँ-बाप को बुढ़ापे में निःसहाय छोड़ना हो,या अपनी पत्नी की यातना हो,या १ इंच जमीन या कुछ रुपयों के कारण मार-काट या हत्या करना हो,या मासूम बच्चों का अपहरण होl कहाँ खोजें मानवता और उसका मान। लिप्सा के दावानल में सारी प्रकृति जल कर ख़ाक होती जा रही है। सारी दुनिया अपनी स्वार्थी विस्तारवादी नीति के जलप्लावन में डूबती जा रही है। नीति,धर्म,न्याय,त्याग, परमार्थ,दया,सामाजिक मर्यादाएँ और मानवीय मूल्यक संकोच सब स्वार्थ में विलीन होते जा रहे हैं। हजारों जातियों,अनेक धर्मों,हजारों भाषाओं में बँटा मानव समाज आपसी वैर-भाव,शत्रुता,घृणा और हालाहल विकराल विष के कुंड में जलकर भस्म होता जा रहा है। सड़कों,गलियों,मुहल्लों,जंगलों में भटकते करोड़ों पशुतुल्य लावारिस की तरह दलित, पीड़ित,अवसीदित भूखे-नंगे चीथड़ों में लिपटी हुई लाचार बेबस अनाथ बेघर खानाबदोसी कराहती सिसकती जिंदगी है। कहाँ है संवेदना,कहाँ है दीन-हीन आत्मकथा का वाचक,शोधक और मानवरक्षक ? कहाँ है लोकतंत्र और गरिमामय संविधान की सार्वजनिक और सार्वकालिक नियमावली संरक्षण ? कहाँ है आम जनमत की देखरेख-सुरक्षा ? जिनके मतों को पाकर ये सत्ताधारी ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक ऐशो-आराम,पद गरिमा,धन कुबेर,मान-सम्मानों से इतराते नहीं थकते। कर्तव्य बोध की दिशा और दशा बनाते और उपदेशक बनते फिरते, उन सबका कर्तव्य बोधन उन लाचार गरीब मजदूरों,रैय्यतदारों के पैरों तले दबे क्षुधार्त तृषार्त कर्ज से दबे लघुतर किसानों,उच्च जाति में जन्मे दीन धनहीन करोड़ों लोगों जो उच्च जाति जन्मा होने के कारण शासन, प्रशासन और सत्ता द्वारा अनदेखे बन पशुतुल्य जीवन व्यतीत कर रहे हैंl कौन सुन रहा है उनकी अन्तर्व्यथा कथा,पीड़ा ? आज के संवेदनहीन समाज में मानवीय मूल्यों का अन्वेषण,उनके प्रति परमार्थसूचक संवेदना, मान-सम्मान और कर्तव्य बोध कहाँ मिलेंगे। सब भौतिक सुख-सुविधा के पीछे मदमत्त हिंसक,ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के बन गए हैं। कर्तव्य बोध रहित यह मानवीय समाज अपने अधिकारों की प्राप्ति हेतु लालायित कुछ भी तरकीब लगाने को तैयार है।
लोकतंत्र की चौथी आँख का सतत दम्भ भरने वाले पत्रकार और पत्रकारिता उन दुर्घटनास्थलों पर विशिष्ट अधिकारियों, विधायक-सांसदों,मंत्रियों और शासकों की ख़ोज करते चिन्तित,पूछते रहते हैं। आम जनता की हताहत की चिन्ता उन्हें नहीं होती।
किसकी और कितनी बात करेंl आज की कलियुगी स्वार्थी चकाचौंध में मदमाते संवेदनहीनता,मानवीय मूल्य का क्षरण और दानवीय कुकृत्यों का। ये स्वार्थी तत्त्व धर्म जाति के नाम पर अबोध गरीब कामगार जनता को नफ़रत की झोंक में बरगला कर दंगों की आग में झोंक देते हैंl चाहे वे भारत-पाक विभाजनकालीन लाखों हिन्दू-मुस्लिमों का कायराना शैतानी कत्ल हो,या जे.पी.छात्र आन्दोलन के समय सत्तान्ध सत्ता द्वारा हज़ारों छात्रों की निर्मम हत्या,या १९७७ का आपातकालीन दमन हो। भोपाल के गैस काण्ड में हताहत हजारों लोगों की मौत का क्रूर नृत्य और अलीगढ़ का धार्मिक उन्मादित दंगों में हजारों की मौत या रेल अग्निकाण्ड में ५९ कारसेवकों को जलाकर मार देना होl और उसके परिणामतः गुजरात में भड़की घिनौनी साम्प्रदायिक दंगे और हजारों निरपराध लोंगों की मौत।
लिप्सा-परायणता की यह कहानी प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध और उनमें लाखों हताहत लोगों और अनंत अवर्णनीय धन वैभव और प्राकृतिक संसाधनों की तबाही सर्वज्ञात ही है। जालियाँवाला बाग काण्ड में हजारों देशभक्तों की ख़ौफनाक मौत और जनरल डार्विन के अमानवीय क्रूर कृत्य को कौन भुला सकता है। अब तो स्वार्थी मानव स्वरविहीन पालतू पशुओं-पक्षियों की भी जघन्य ख़ौफनाक हत्या करने पर तुले हैं। वे नित्य गायों,भैंसों,हाथियों,बाघों,हिरनों की हत्या कर फूले नहीं समाते हैं।
छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से दुश्मनी, अपहरण और फिर मौत का दानवीय खेल खेलते हैं। कहाँ हम मानवता की बात करें, मानवीय सम्मान और कीर्ति की बात करें। अतः,नित हमारे द्वारा क्षत-विक्षत प्रकृति भी अनेक प्राकृतिक विपदाओं से हम सब पर आघात कर रही हैl फिर भी विस्तारवादी लालची सोच के कारण विकराल मानव विनाशसूचक परमाणु अस्त्र-शस्त्रों की होड़ लगी है दुनिया में। सब भाग रहे हैं दौलत के पीछे बिना सोचे-समझे, सारी छद्म तिकड़मों को अपनाकर सब-कुछ पाने के लिए चाहत,बस पाना है।
अतः,आज हम देश-दुनिया में मानवीय मूल्यों का नित क्षरण और मानवता के मान-सम्मान का अभाव देखते हैं। आशा करें,मानव जाति को सद्विवेक और सुबुद्धि हो और वह पुनः संवेदित मानवीय नैतिक मूल्यों को समझकर मानवता और मान दोनों के श्रीवर्धन में अपना योगदान दें,जिससे यह धरती हरी-भरी उर्वरित कुसमित सुरभित हो सके-
तजे स्वार्थ मानव जगत,सोचे बुद्धि विवेक। परहित रत नवप्रीति कर,मानवीय अभिषेकll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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