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बाला-मुसीबत बनी हास्य-व्यंग्य का कारण

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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अदाकार आयुष्मान खुराना,भूमि पेडनेकर, यामी गौतम,सौरभ शुक्ला और जावेद जाफरी के अभिनय से सजी ‘बाला’ के निर्देशक अमर कौशिक हैं।
#पहले छोटी चर्चा-
दोस्तों,इंसान की प्रवृत्ति में एक विकार अंतर्निहित होता है,जैसे कि वह गोरा मैं काला क्यों,वह पतला मैं मोटा क्यों, उसके सिर पर बाल घने और मेरे सिर पर कम बाल क्यों..। इंसानों में एक विकार या(एहसासे कमतरी) होती ही होती है,यदि यह न हो तो मनुष्य पूर्णता पा ले। वैसे भी,हर इंसान चेहरे से कुछ और अंदर से कुछ और होता ही है,यानी हर शख्स अपनी हीन भावना(एहसासे कमतरी) का शिकार होता है। लेखक ने इसी विषय कि सिर पर बाल गायब-गंजापन या टकले इंसान की व्यथा-कथा को बड़े ही शानदार हास्य के साथ गढ़ा है।


#कहानी-
बाल मुकुंद उर्फ बाला(आयुष्मान खुराना) के सिर के बाल अपनी कहानी सुना रहे हैं कि कैसे वह बेहद रेशमी लहलहाते होने के साथ घने थे। बाला के सिर का ताज थे,कैसे वह बाला की खूबसूरती का राज थे,लेकिन बाला के बालों को किसी की बदनज़र के चलते आज बाला के सिर के बाल उसका साथ छोड़कर जा चुके हैं,और बाला मधुमेह (डायबिटीज) की भी चपेट में है,जिनकी उसकी उम्र महज़ २५ साल ही है-यह एहसासे कमतरी से घिर चुका है। गंजेपन के चलते बाला उपहास का पात्र बनता है और हर कोई उस पर तंज करने लगता है। वह हर जतन कर चुका है बालों को वापस लाने के लिए,लेकिन बालों के लिए वह कुछ-कुछ प्रयोग भी करता है, तो उस जतन के खुलने पर और भी ज्यादा उपहास का पात्र बन जाता है।
बाला की बचपन की दोस्त निकिता (भूमि) बाला से प्रेम करती है,लेकिन उसका रंग-रूप सावला होने के कारण बाला उसका मजाक उड़ाता रहता है।
बाला के झूठे बालों के साथ उसके प्यार
‘टिक-टॉक’ गर्ल परी(यामि)का प्रवेश होता है, लेकिन रिश्ते जो झूठ पर टिके हों,वह लम्बे टिक नहीं पाते तो वह प्यार भी उसके सिर के बालों की तरह साथ छोड़ जाता है। इसी गंजेपन की वजह से उसकी बचपन की दोस्त निकिता भी दूर हो चुकी है। अब बाला २५ के हो चले हैं,गृहस्थ आश्रम में प्रवेश का समय आ चुका है,लेकिन गंजेपन के चलते उनकी उम्र ज्यादा दिखती है। इस परेशानी से दो-चार हुए जा रहा है बाला। नौकरी में भी बाला के गंजेपन के चलते अवनति होकर महिलाओं की गोरेपन की क्रीम बेचने का काम दिया जा चुका है। बाला का दोस्त बच्चन(जावेद जाफरी) उसका पूरा-पूरा साथ देता है कि किसी भी तरह बाला के बाल वापस आ जाएँ। इसमें एक से एक प्रयोग दिखाए गए हैं,जो न केवल हास्य पैदा करते हैं,साथ ही व्यंग्य भी बनते जाते हैं। इसमें परिस्तिथिजन्य (सिचुएशनल) हास्य तो है ही, संवाद भी कभी कोई कमी नहीं रखते हैं।
क्या बाला अपने उजड़े चमन पर बाल वापस ला पाता है,जिंदगी को बालनुमा बना पाता है ? इस जवाब के लिए आपको फ़िल्म देखनी बनती है। हर हीन भावना के पीछे एक खामोश दर्द भी होता है,जो भुगतभोगी इंसान खुद से खुद में सहता है।
#क्यों देखी जाए-
सामाजिक सन्देश हास्य-व्यंग्य के साथ पूरी ईमानदारी से परोसा गया है। संवाद निरेन भट्ट ने लिखे हैं,जो आपको पल-पल गुदगुदाते रहते हैं। कैसे एक आम आदमी हीन भावना या अवसाद को छोड़कर ज़िन्दगी में सफलता पाता है,सामाजिक तिरस्कार से लड़ कर कैसे कोई इंसान अपनी कमजोरियों को पीछे छोड़ कर सफलता की कुंजी पाता है ?,यह भी इसमें है।
#कमियाँ-
कुछ एक संवाद बेहद स्तरहीन हो ज़ाते हैं,लेकिन इन्हें भी हज़म किया जा सकता है। गीत-संगीत पर भी चर्चा करना फिजूल ही होगा। पूरी फिल्म कहीं पर भी अपनी पकड़ नहीं छोड़ती, जो लाजवाब है। पहला भाग दमदार और कसा हुआ है।
#फ़िल्म से हट कर चर्चा-
साथ में आ रही है फ़िल्म ‘उजड़ा चमन’ यही विषय,यही मूल कल्पना में गंजापन है। यह दोनों फिल्म कन्नड़ फ़िल्म की रीमेक है,जिस पर पहले मलयालम में रीमेक आ चुकी है। छोटे बजट की फिल्मों ने पूरे बॉलीवुड को बता दिया कि,विषय अच्छा हो तो दर्शक आ ही जाते हैं।
#बजट और पर्दे-
लगभग ४० करोड़ के बजट की फ़िल्म है, जिसे लगभग २२००-२५०० पर्दों (स्क्रीन्स) पर प्रदर्शित किया जा रहा है। आयुष्मान की इस साल की लगातार तीसरी सफल फ़िल्म यह होगी। ‘आर्टिकल १५’,’ड्रीमगर्ल’ और अब ‘बाला’ है,साथ ही आयुष्मान की लगातार सातवीं सफल फिल्मों में शुमार होने को यह फिल्म तैयार है।
#अदाकारी-
आयुष्मान इतने जुनूनी अभिनेता हैं जो कुछ भी कर सकने का माद्दा रखते हैं। हर प्रयोग के लिये तैयार हो जाते हैं। लगता है वह आज के अमोल पालेकर बनने की कवायद में आगे बढ़ रहे हैं। भूमि और यामी के किरदार छोटे ही है,परंतु भूमि बेहद असरकारक काम कर गई है। सौरभ शुक्ला,जावेद,मनोज पाहवा भी किरदारों को जीवंत बना गए हैं। आयुष्मान ने फिर लगातार खुद को साबित किया है। यहां भी सफल रहे हैं। इस फ़िल्म के साथ ही ‘बायपास-उजड़ा हम’ भी प्रदर्शित हो रही है,लेकिन ‘बाला’ इन तीनों में बाला सबसे मजबूत फ़िल्म लग रही है। ‘बाला’ हास्य-व्यंग्य से भरपूर होकर पूरा पैसा वसूल फ़िल्म है। इसे साढ़े ३ सितारे दिए जाना सही होगा।

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl

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