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संग्रह का निहित स्वार्थ छोड़ना होगा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आज संसार में मानवीय मृगतृष्णा सागरवत मुखाकृति को अनवरत धारण करती जा रही है। एतदर्थ मनुष्य साम,दाम,दंड,भेद,छल,प्रपंच, धोखा,झूठ,ईर्ष्या,द्वेष,लूट,घूस,दंगा,हिंसा,घृणा और दुष्कर्म आदि सभी भौतिक सुखार्थ आधानों को अपना रहे हैं। सतत् प्राकृतिक संसाधनों, जैसे-भूमि खनन,वन सम्पदा का कर्तनt,पहाड़ों को काटना,नदियों का खनन एवं समुद्रों को भी प्रदूषित करने से मनुष्य बाज़ नहीं आ रहा। भौतिक लालच से सराबोर सुख वैभव विलासिता ने गेहूँ और गुलाब की महत्ता को महत्त्वहीन कर दिया है। मानव की इन्सानियत,मानवता और नैतिकता अब दानव की शैतानियत,ख़ुदगर्जी और पशुता को शिरोधार्य कर प्रकृति,धरती के सर्वनाश और मानव जाति के मौत की सौदागर बन गई हैं।
घोटालों,सौदेबाज़ी,जमाख़ोरी,घूसख़ोरी,राष्ट्रीय जनहित सम्पदाओं की लूट की आज धूम मची है। जिसको जहाँ अवसर मिल रहा है,वहीं अपना हाथ साफ़ कर रहा है। सरकारी तंत्रों का समर्थन और निर्भीत निर्लज्ज़ता इस कुकृत्य में नित सहयोग दे रही है। धन-वैभव संग्रह की प्रवृत्ति ने भयावह सुरसा का रूप धारण कर लिया है। समाज,प्रदेश और राष्ट्रीय शुभा-शुभ सभी समय में भौतिक संसाधनों का चोरी गुप्त संग्रह देश की आर्थिक और जनहित विकासोन्मुख रीढ़ को तोड़ रहा है। अभी के विकराल ‘कोरोना’ महामारी काल को ही देखिए। एकतरफ़ प्रतिदिन हजारों लोग कारोना के कारण प्राणवायु,पलंग,जीवन रक्षक प्रणाली के बिना ज़ान गँवा रहे हैं,दूसरी ओर रसूख़दार,एन.जी.ओ.,विधायक,सांसद, मंत्री और मानव जाति के श्वाँसों के दुश्मन कुछ लोग इनका संग्रह कर मौत की सौदागरी कर रहे हैं। इस भयानक महामारी में जो जीवनरक्षक चीजें अस्पतालों में होनी चाहिए,वे सभी उन सामर्थ्यवान कुचक्र निर्माताओं के घर में संग्रहित है। आख़िर क्यों,मानव मन में संग्रह की प्रवृति आजकल विशेष रूप से जाग गई है। एकमात्र कारण असंतोष, लोभ और आशंका का हालाहल व्याधिरूप ज़हर ही है। संवेदना,दया, करुणा,वात्सल्य,सहयोग और नीति,त्याग,न्याय और परस्पर परहित प्रीति के समरस सद्भावन भाव मानवीय भौतिक लालच के गहन अंधकार में कहीं विलीन-सा हो गया है। मनुष्य अपने ईमान,ज़मीर और आदमीयत को भूल दानव बन गया है।

आज देश और विश्व पटल पर मानव जाति के सामने कोरोना जैसी महामारी करोड़ों की जान ले चुकी है और ले रही है। अतः,हम सबको अपना निहित स्वार्थ तज मानव जीवन के रक्षार्थ और इस कोरोना रूपी मौत से रक्षण हेतु एकसाथ एक स्वर में एकता के सूत्र में बंधकर लोकमंगलार्थ सरकार और जनता की मदद करनी चाहिए। संग्रह तो सदैव विद्याधन का करना अपेक्षित है,जिससे और भी विज्ञान समुन्नत और लोकोपयोगी हो सके।

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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