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अपनेपन का चौबारा हो

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

राग-द्वेष का नाम न हो
और प्यार से भी प्यारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

खेल खेलें,प्यार से हम
न जीते,कोई न हारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

मेरा हो न,कुछ तेरा हो
जो भी हो,बस हमारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

हो सम्मान,बुजर्गों का
अपमान कभी,न गंवारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

पल भर भी,रुक न सके
प्यार से जब,पुकारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

सभी की ख़ुशी के लिए
तन-मन-धन सब वारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमरा हो…।

विश्वास की छत और
अपनेपन का चौबारा हो,
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…।

घर हमारा,एक मंदिर हो,
ईश्वर का हमें,सहारा हो।
ऐसा,घर-परिवार हमारा हो…॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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